लेखक । रूपेश उपाध्याय , डिप्टी कलेक्टर ।
खरगौन जिले का रावेरखेड़ी गाँव , झुलसा देने बाली लू के थपेड़े , नर्मदा का किनारा और किनारे पर है यह समाधि उस पराक्रमी , अपराजेय योद्धा की जिसके साथ इतिहासकारों , समाज , और देश ने न्याय नही किया ।
इस वीर योद्धा की न तो चौराहों पर मूर्तियाँ लगाई गई , इसे लेकर न किसी का जातीय स्वाभिमान जागा , न उसे जन्म दिन और पुण्य तिथि पर याद किया गया , न देश भक्तों , शहीदों , महापुरुषों में उसका नाम लिया गया ।
हम बात कर रहे है बाजीराव प्रथम की , जिसने अपने शौर्य और पराक्रम से शिवाजी के हिन्दू पादशाही के सपने को आधार दिया ।
मुगल , पुर्तगालीयों , की हिन्दू प्रजा को सताने , उनके देवस्थान तोड़ने ,धर्मांतरण कराने ,तथा शोषण करने की प्रबृत्ति से रक्षा की।
पेशवा बालाजी विश्वनाथ की अचानक मृत्यु होने पर उसके पुत्र बाजीराव को छत्रपति साहू महाराज ने केबल 20 वर्ष की उम्र में पेशवा बनाया।
बाजीराव बचपन से ही घुड़सवारी ,तीरंदाजी तलवारबाजी ,,भाला , बनेठी और लाठी चलाने में पारंगत था। उसने अद्भुत रणकौशल , अदम्य साहस ,और अपूर्व नेतृत्व क्षमता के कारण मराठा साम्राज्य को देश मे सर्व शक्तिमान बना दिया।
शकर खेड़ा में मुवारेज खान , पालखेड़ा में निज़ाम , मालवा में मुग़ल सेनानायक गिरधर बहादुर ,दया बहादुर को परास्त कर कर्नाटक ,दक्षिण , खानदेश ,मालवा आदि पर प्रभुत्व स्थापित किया तथा दभोई में त्रियम्बक राव को नतमस्तक किया।
सन 1737 ई में दिल्ली अभियान उनका चरमोत्कर्ष था । उन्होंने औरंजेब के पोते मुगल सम्राट मुहम्मद शाह को दिल्ली में जाकर ललकारा और लालकिले में कैद कर लिया।
मुहम्मद खान बंगस ने जब बुंदेलखंड के राजा छत्रशाल पर आक्रमण किया तब बाज़ीराव उनकी सहायता के लिए आ पहुँचे।
बंगस परास्त कर बुन्देखण्ड की रक्षा की। पन्ना में छत्रसाल की मेहमानबाजी के दौरान उनकी मुस्लिम पत्नी से उत्पन्न पुत्री मस्तानी से प्रेम हो गया। यह प्रेम कहानी परवान चढ़ी ।
महाराज छत्रसाल ने अपनी पुत्री मस्तानी का विवाह बालाजी राव बल्लाल से कर दिया तथा बुन्देलखण्ड का एक भाग बालाजी को सहर्ष अर्पण कर दिया।
मस्तानी में घुड़सवारी , तलवारबाजी में पारंगत होने के साथ ही उसमे वीरांगनाओं के सभीगुण थे । वह अनिध्य सुंदरी और कुशल नृत्यांगना भी थी ।
छत्रसाल की नगरी पन्ना से बाज़ीराव मस्तानी के साथ पूना लौटे , पर पुणे के परम्पराबादी समाज मे मस्तानी का स्वागत नही हुआ।
बालाजी पुणे के चित्तपन ब्राम्हण थे ।उनके परिवार एवं पुणे के चित्तपन ब्राम्हणों को मस्तानी बाज़ीराव की पत्नी के रूप में स्वीकार नही थी।
इन हालातों में मस्तानी के विरुद्ध अनेक कुचक्र षड्यंत्र रचे गए। दोनो को अनेक परेशानियां और मानसिक क्लेश झेलना पड़ा।बाज़ीराव को मस्तानी के लिए अलग महल बन बाना पड़ा।
बाज़ीराव की पहली पत्नी काशी बाई से से तीन पुत्र थे , जिनमें से बालाजी बाज़ीराव बाद में पेशवा बना। मस्तानी से एक पुत्र हुआ। जिसका नाम कृष्णराव रखा गया या शमशेर बहादुर था।
जीवन के अंतिम दिनों में उसने नसीरजंग को सन 1739 में परास्त किया तथा 1939 में ही अपने भाई चिम्मा जी अप्पा को भेज कर पुर्तगालियों को नेस्तनाबूद करबाया और बसई की संधि की।
मराठा साम्राज्य का अटक से कटक तक विस्तार हो गया। अरब सागर से बंगाल खाड़ी को मराठा साम्राज्य की सीमा स्पर्श कर रही थी।
बाज़ीराव ने जीवन काल मे उसने 41 लड़ाईयां लड़ी और सब मे विजय प्राप्त की। घोड़े पर बैठ कर उनकी भाले की फैंक इतनी जबरदस्त होती थी कि घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।
बाज़ीराव ने होल्कर , सिंधिया , गायकवाड़ , पवार जैसे मराठा सरदारों की एक पूरी पीढ़ी तैयार की थी । जिसके फलस्वरूप इंदौर , ग्वालियर , बड़ौदा , नागपुर जैसे राज्य अस्तित्व में आये ।
पूना को विकसित करने का श्रेय भी बाज़ीराव को ही जाता है। उसने पूना में शनिवार बाडा के अलावा कोथरूड में अपनी दूसरी पत्नी मस्तानी के लिए अलग से महल बनबाया।
अपनी प्रेयसी पत्नी मस्तानी के प्रेम में आकंठ डूबे बाज़ीराव सैनिक अभियान के दौरान बीमार पड़ गए।अंतिम समय मस्तानी से मिलने की उनकी इच्छा पूरी नही हो सकी।
पश्चमी निमाड़ के रावेरखेड़ी गाँव के समीप सैनिक शिविर में भीषण गर्मी और लू के कारण उनकी हालत और बिगड़ गई। 28 अप्रैल 1740 को यही उनकी मृत्यु हो गई।
रावेरखेड़ी गाँव मे ही पेशवा के स्वामिभक्त सिंधिया ने उनकी समाधि का निर्माण कराया।उसकी मृत्यु के पश्चात मस्तानी भी कुछ समय बाद इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। मस्तानी की कब्र पूना के पास पवल गांव में बनी है।
अमेरिकन इतिहासकार बर्नाड मांटो गोमेरी ने उन्हें भारत का महानतम सेनापति बताया है। पालखेड़ा के युद्ध मे जिस तरह निज़ाम को हराया यह बाज़ीराव ही कर सकते थे।
रिचर्ड टेम्पल के अनुसार सवार के रूप में बाज़ीराव को कोई मात नही दे सकता था।
इस प्रकार इस जाबांज मराठा सेनानायक और एक प्रेमकहानी का अंत हुआ। कृष्णराव की परवरिश काशी बाई ने की । उसे बाँदा की जागीर दी गई।
बाज़ीराव को महान योद्धा ,युद्धकर्ता पेशवा ,के रूप में तथा हिन्दू शक्ति के अवतार के रूप में मराठे स्मरण करते है।