मानवता के सबसे बड़े दुश्मन साबित हुए मौलाना साद
लॉकडाउन के बावजूद यहां 2000 से ज्यादा लोगों का इकट्ठा होना जमात की सामाजिक जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर रहा है. दिल्ली पुलिस ने तो तबलीगी जमात के मौलाना साद और अन्य के खिलाफ महामारी कानून 1897 के तहत केस भी दर्ज कर लिया है. मौलाना साद ही तबलीगी जमात के अमीर यानी मुखिया हैं.
- लॉकडाउन के बाद तबलीगी जमात के मरकज में 2000 लोग मौजूद थे
- तबलीगी जमात के मौलाना साद व अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज
दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात के मरकज में कोरोना वायरस फैलने से ये जमात देशभर के निशाने पर आ गई है. लॉकडाउन के बावजूद यहां 2000 से ज्यादा लोगों का इकट्ठा होना जमात की सामाजिक जिम्मेदारी पर सवाल खड़े कर रहा है. दिल्ली पुलिस ने तो तबलीगी जमात के मौलाना साद और अन्य के खिलाफ महामारी कानून 1897 के तहत केस भी दर्ज कर लिया है. मौलाना साद ही तबलीगी जमात के अमीर यानी मुखिया हैं.
वैसे ये पहला मौका नहीं है जब मौलाना साद और तबलीगी जमात विवादों में फंसी हो. तीन साल पहले तो जमात में ऐसा विवाद हुआ था कि उसने उसे दो गुटों में बांट दिया था. इसी के बाद मौलाना साद ने पुरानी तबलीगी जमात का खुद को अमीर घोषित किया. दूसरा गुट 10 सदस्यों की सूरा कमेटी बनाकर दिल्ली के तुर्कमान गेट पर मस्जिद फैज-ए-इलाही से अपनी अलग तबलीगी जमात चला रहा है. मौलाना इब्राहीम, मौलाना अहमद लाड और मौलाना जुहैर सहित कई इस्लामिक स्कॉलर इस दूसरे गुट से जुड़े हुए हैं.
खास बात ये है कि कोरोना संक्रमण के खतरे को भांपते हुए मस्जिद फैज-ए-इलाही ने तबलीगी जमात का काम सरकार की चेतावनी के बहुत पहले एक मार्च को ही बंद कर दिया था. दूसरी ओर, निजामुद्दीन मरकज में जमात का काम हर तरह की ऐहतियात से बेपरवाह रहते हुए जारी रहा. 13 मार्च को ही मौलाना साद ने मरकज में जोड़ का एक कार्यक्रम रखा था, जिसके लिए भारत ही नहीं विदेश से भी काफी लोग आए थे. इसी के चलते लॉकडाउन के बाद भी तबलीगी जमात के मरकज में हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे.
मौलाना साद के परदादा मौलाना इलियास कांधलवी ने ही 1927 में तबलीगी जमात का गठन किया था. वे उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कांधला के रहने वाले थे, जिसकी वजह से अपने नाम के साथ कांधलवी लगाते थे. मौलाना इलियास के चौथी पीढ़ी से मौलाना साद आते हैं और परपोते हैं. इसके अलावा मौलाना साद के दादा मौलाना युसुफ थे, जो मौलाना इलियास के बेटे थे और उनके निधन के बाद अमीर बने थे.
1965 में दिल्ली में मौलाना साद का जन्म हुआ और उनके पिता का नाम मौलाना मोहम्मद हारून था. मौलाना साद शुरुआती पढ़ाई 1987 में मदरसा कशफुल उलूम, हजरत निजामुद्दीन में की. इसके बाद वो सहारनपुर चले गए, जहां उन्होंने आलमियत की डिग्री हासिल की.
मौलाना साद ने खुद को घोषित किया था प्रमुख
साल 1995 में मौलाना इनामुल हसन का निधन हो गया. उनके बाद तबलीगी जमात का सर्वेसर्वा कौन होगा इसपर विवाद पैदा हो गया. इसके चलते किसी को भी प्रमुख नहीं बनाया गया बल्कि 10 सदस्यों की जो सूरा कमेटी थी उसी की देखरेख में जमात का काम चलता रहा. इस कमेटी के ज्यादातर सदस्यों की मौत हो चुकी है. मौलाना जुबैर के 2015 में निधन के बाद सूरा में अब्दुल वहाब बचे थे. इसके बाद तबलीगी जमात में लोगों ने कहा कि कमेटी के जिन सदस्यों के निधन से जगह रिक्त हुई हैं उन्हें भरा जाए. मौलाना साद इसके लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने खुद को तबलीगी जमात का अमीर घोषित कर दिया.