नई दिल्ली । मध्यप्रदेश में लगभग दो दर्जन विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनावों पर लगभग 6 महीने का ग्रहण लगने जा रहा है , एक तरफ जहां कोरोनावायरस संक्रमण के कारण स्थितियां उपचुनाव को लेकर बिल्कुल प्रतिकूल नहीं है , वहीं दूसरी ओर लॉक डाउन की स्थिति भी लगातार मध्यप्रदेश में आगे बढ़ने की परिस्थितियों में जा पहुंची है । प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल, इंदौर ,एवं उज्जैन को लेकर कुछ ही दिन पहले बयान दिया था कि इन तीनों शहरों में लोग डाउन 3 मई के दिन के बाद भी जारी रह सकता है । ऐसी परिस्थिति में मुख्य चुनाव आयुक्त कार्यालय की ओर से जो संकेत प्राप्त हो गए हैं उनके अनुसार 6 महीने तक तो वर्तमान परिदृश्य में चुनाव कराया जाना संभव ही नहीं है ।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई याचिका ।
सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर मांग की गई है कि राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (एनईसी) के अध्यक्ष को निर्देश दिया जाए कि वह सामान्य स्थिति होने तक देश में कहीं भी और किसी भी तरह का चुनाव होने से रोकने के लिए उचित कदम उठाएं। इस प्रकार याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 (डीएमए) के प्रावधानों के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा गठित एनईसी के अध्यक्ष को केंद्रीय और सभी राज्य चुनाव आयोगों को आवश्यक निर्देश जारी करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए। यह भी दलील दी गई है कि एनईसी के अध्यक्ष सक्रिय उपायों के माध्यम से भारत के नागरिकों की रक्षा करने के लिए बाध्य हैं। साथ ही कहा गया कि- ''प्रतिवादी ऐसी सभी गतिविधियों की पहचान करने के बाध्य है,जिनको अगर देश में सामान्य स्थिति होने से पहले छूट या अनुमति दे दी गई तो मानव संचरण द्वारा कोरोनावायरस के फैलने की अधिक संभावना होगी। वहीं राज्य सरकारों, विभागों, संवैधानिक निकायों आदि को दिशा-निर्देश जारी करके इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएं।''
मतदाताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा का दिया हवाला ।
अधिवक्ता डी. नरेंद्र रेड्डी द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन का उद्देश्य लोगों की आवाजाही को प्रतिबंधित करने और सामाजिक दूरी को बनाए रखकर नोवल कोरोना वायरस के प्रसार को रोकना है। न्यायपालिका के प्रतिबंधित कामकाज सहित लॉकडाउन के दौरान बंद किए गए विभिन्न कामकाजों के उदाहरणों का हवाला देते हुए रेड्डी ने कई मीडिया रिपोर्ट का भी हवाला दिया और सुझाव दिया कि बड़ी संख्या में लोगों को एकत्रित होने की अनुमति देने संबंधी कोई भी छूट घातक होगी और इसे टाला जाना चाहिए। यह भी इंगित किया गया है कि मतदान प्रक्रिया के लिए मतदाताओं को मतदान केंद्रों के बाहर आने और एकत्रित होने की आवश्यकता होती है। जो लॉकडाउन के उद्देश्य को पराजित करेगा और मतदाताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा को भी खतरे में डालेगा।
संवैधानिक अधिकारों और सुरक्षा उपायों का उल्लंघन।
दूसरी तरफ इस बात पर भी प्रकाश ड़ाला गया कि यह भी हो सकता है कि COVID-19 के प्रकोप के मद्देनजर चुनाव के समय मतदान का प्रतिशत बहुत कम रहे। जो चुनावी लोकतंत्र के उद्देश्य और अंतिम परिणाम को भी प्रभावित करेगा। इसलिए यह आग्रह किया जा रहा है कि स्थानीय चुनाव निकाय सहित सभी चुनावों को सामान्य होने तक स्थगित किया जाना चाहिए। ''अगर नागरिकों के जीवन के हित में प्रतिवादी द्वारा देश भर में सभी प्रकार के चुनावों को न टाला गया तो यह माननीय न्यायालय की टिप्पणियों के मद्देनजर भारत के संविधान के तहत लोगों को प्रदान किए गए संवैधानिक अधिकारों और सुरक्षा उपायों के स्पष्ट उल्लंघन के समान होगा।
कई प्रदेशों में पूर्व में चुनाव हो चुके थे स्थगित ।
माननीय न्यायालय ने अपनी टिप्पणियों में कहा था कि स्वास्थ्य का अधिकार एक अहम हिस्सा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लागू मौलिक अधिकार है।'' अपनी बात रखने के लिए रेड्डी ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के उस फैसले पर जोर दिया,जिसमें राज्यों की परिषद (उच्च सदन) की 18 सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव स्थगित करने का निर्णय किया गया है। यह निर्णय एनईसी के अध्यक्ष के आदेश के आधार पर किया गया है। यह चुनाव आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और राजस्थान राज्स से संबंधित थे। यह भी बताया गया है कि इसी प्रकार बिहार की 17 सीटों, महाराष्ट्र में 9 और उत्तर प्रदेश में 11 सीटों के लिए विधान परिषद के चुनाव भी ईसीआई ने स्थगित कर दिए थे। ''भले ही राज्यसभा और विधान परिषदों के चुनावों में भागीदारी बहुत सीमित होती है... ईसीआई ने उक्त चुनावों को यह कहते हुए स्थगित कर दिया कि सामाजिक दूरी को बनाए रखना सीमित प्रतिभागियों के मामले में भी संभव नहीं है।''