गलत धारणा के चलते समाज ने दो लोगों को अपेक्षित सम्मान नहीं दिया । भगवान परशुराम और महर्षि चाणक्य ।

     



 


प्रसंगवश । लेखक ।


   धैर्यवर्धन शर्मा
  प्रदेश कार्य समिति सदस्य
    भारतीय जनता पार्टी 
        मध्यप्रदेश


( म.प्र. के मुख्यमंत्री मा. शिवराज सिंह जी का आभार कि उन्होंने भगवान परशुराम जी के प्राकट्य दिवस पर पिछले कार्यकाल में ही शासकीय अवकाश घोषित किया था )


शातिरों ने एक को क्षत्रिय विरोधी बता दिया तो दूसरे को कुटिल राजनीतिज्ञ ।


भगवान परशुराम ने भगवान राम को भी अपनी शक्ति, अस्त्र, शस्त्र दी । क्या राम जी के सभी उपासकों को दिल से भगवान परशुराम के श्री चरणों में अपना शीश नहीं झुकना चाहिए ? जबकि स्वयं प्रभु श्री राम ने उनको बारंबार सम्मान दिया हो ।


" कह जय जय जय रघुकुल केतु
  भ्रगुपति गए वनहिं तप हेतु ।।


दोनों ने परस्पर प्रणाम कर राजा जनक जी के यहां  मौजूद देश देश के राजाओं, महाबलियों और सभासदों को एक दूसरे की महत्ता से अवगत कराया ।


भगवान श्री राम की प्रदक्षिणा करके वे वन को चले गए ।
अमर और अविनाशी परशुराम जी भगवान कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्धकौशल की शिक्षा प्रदान करेंगे क्योंकि हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान परशुराम अमर हैं वे कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होंगे । इसी लोक में विचरण करेंगे ।


परशुराम जी ने तो गंगा पुत्र भीष्म को भी शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान दिया था । पितामह भीष्म बारम्बार इसका उच्चारण करके अपने गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित भी करते रहते थे । क्या पितामह भीष्म विशुद्ध क्षत्रिय कुल गौरव नहीं थे । 


फिर परशुराम जी क्षत्रिय विरोधी कैसे हुए ! 


हनुमान जी महाराज को बल बुद्धि की निपुणता दी । 


पांडवों और कौरवों के गुरु ऋषि द्रौणाचार्य भी परशुराम जी के ही शिष्य थे । 
 भगवान परशुराम ने ही सूर्य पुत्र कर्ण ( तत्कालीन शूद्र पुत्र ) को धनुर्धारी बनाया ।
वे तो आतताईयों और अत्याचारी शासकों के विनाशक रहे फिर वह राजा किसी भी समाज का क्यों न रहा हो ।
मान्यता है कि केरल, कोंकण और गोवा राज्य की स्थापना भी भगवान परशुराम ने ही की है । समुद्र किनारे लोगों को बसाकर वहां छोटे छोटे गांवों में वैदिक संस्कृति की स्थापना एवम् कृषि कार्य प्रारंभ कराया । मनुष्यों को बसाने के लिए समुद्र से एक विशेष आकार की भूमि प्राप्त कर वहां लोगों की बसाहट की ।
केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू की उत्तरी शैली वडेक्कनकलरी के संस्थापक आचार्य एवम् आदि गुरु परशुराम जी ही हैं । यह युद्ध कला आज भी केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पूर्वोत्तर श्रीलंका एवम् मलेशिया देश के मलयाली समुदाय में प्रचलित है ।
  भगवान परशुराम जी ने किसी भी जीते हुए राज्य पर राजा बनकर राज्य नहीं किया वल्कि जनहितैषी किसी योग्य व्यक्ति को राज काज सौंपकर वहां से चले जाते थे ।
उन्होंने महर्षि अत्रि की धर्मपत्नी देवी अनुसुइया जी , महर्षि अगस्त्य की धर्मपत्नी देवी लोपामुद्रा जी एवम् अपने प्रिय शिष्य अक्रतवण आदि के सहयोग से नारी जागृति अभियान चलाया ।
मध्यप्रदेश में इंदौर के पास जनापौर में उनकी जन्मस्थली


 पर अरूणांचल प्रदेश के लोहित जिला की उत्तर पूर्व दिशा में 24 किलोमीटर दूर परशुराम कुंड ( प्रभु कुठार दूसरा प्रचलित नाम ) है जहां मकर संक्रांति पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु जाते हैं ।
हिमांचल प्रदेश के सिरमौर जिले में नाहन से 40 किलोमीटर दूर रेणुका झील नामक तीर्थस्थल है ।
गुजरात में खंभात की खाड़ी के नजदीक जहां पवित्र नर्मदा नदी का समुद्र मिलन है वहीं भरूच शहर में भ्रगु ऋषि का आश्रम है । कहते हैं यह क्षेत्र भ्रगु ऋषि और कालांतर में भगवान परशुराम जी की तपस्थली रहा है ।
श्री '' भार्गवराघवीयम '' संस्कृत महाकाव्य की रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने की है जिसमें प्रभु श्रीराम और भगवान परशुराम के बारे में 2121 श्लोक लिखे गए ।


रामभद्राचार्य जी को 2005 में संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ । इस पवित्र पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री, महान साहित्यकार, कविश्रेष्ठ भारतरत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेई जी द्वारा 30 अक्टूबर 2002 को किया गया था ।


पवित्रतम मुहूर्त अक्षय तृतीया


भगवान परशुराम जी के जन्मदिवस अक्षय तृतीया के दिन जो भी शुभ कार्य किया जाता है उसका अक्षय फल प्राप्त होता है । पवित्रतम मुहूर्त होने के कारण अक्षय तृतीया के दिन भारत की बहुत सारी जातियां सामूहिक विवाह सम्मेलन आयोजित कर उन्हीं प्रभु का आशीर्वाद लेकर शांतिपूर्ण और सुखद वैवाहिक जीवन जीती हैं ।आज भी तो आई एस आई एस , लिट्टे, लश्करे तैयबा , इनामी डकैतों को मार गिराकर समाज में शांति की स्थापना के प्रयास निरंतर किए जाते हैं । शांतिभंग करने वाले उपद्रवी को दण्डित करके कोई साधारण आदमी जब अपने मोहल्ले में लोगों के द्वारा सराहा जाता है । बलात्कार अथवा क्रूर अपराधों को करने वाले व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार करती है, न्यायाधीश सजा मुकर्रर करते हैं और जल्लाद फांसी चढ़ा देता है तब हम इस सम्पूर्ण कार्यवाही को समाज के हित में मानते हैं तो फिर उस समय के बलशाली, बुद्धि निपुण, दूरदर्शी लोगों के द्वारा चिन्हित अत्याचारियों को दण्डित किया गया तो वे श्रद्धेय विभूतियां  अचानक से किसी जाति या वर्ग की आलोचना के पात्र कैसे हो सकते हैं ।


  क्या ईश्वर अवतार जाति विरोधी हो सकते हैं


 नहीं, ऐसा सोचना भी पाप है । लोगों ने तो भगवान राम और अन्य देवी देवताओं को भी नहीं बख्शा । कुछ भी अनर्गल बोलते हैं, बोलते रहे, सदैव से ही ।किसी शहर , बस्ती, नगर का समझदार, उदारमना व्यक्ति, प्रतिष्ठित , प्रभावशाली , सरल आदमी जब गरीबों की मदद के लिए अग्रेसर बन जाता है । अपनी अर्जित पूंजी भी लोगों पर दान करता है तो देवत्व को प्राप्त महामानव, भगवान, श्रेष्ठ जन क्या यह नहीं जानते होंगे कि - 



'' परहित सरिस धरम नहीं भाई
   पर पीड़ा सम नहीं अधमायी ।।"


 वे पुण्य आत्माएं कैसे किसी निर्दोष प्राणी का अहित कर सकते थे ?


विष्णुगुप्त चाणक्य


अपने समय के महान अर्थशास्त्री, महान  नीतिशास्त्री , विश्व विख्यात राजनीति  सिद्धांत के प्रतिपालक, महान देशभक्त, विकट आत्मबल और साहस के धनी, एक चरवाहे के बच्चे चन्द्रगुप्त मौर्य को निपुण कर राजा बनाने वाले अंत्योदय के प्रवल समर्थक थे । विष्णूगुप्त चाणक्य जो शुरुआत में तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य / प्रोफेसर थे बाद में एक देश के निष्ठावान प्रधानमंत्री रहे लेकिन कभी राजा बनने की चेष्टा नहीं की क्योंकि वे सत्ता लोलुप नहीं थे । उनका उद्देश्य अपने मार्गदर्शन के माध्यम से नर नारी को सुखमय राज्य प्रदान करना था । परिस्थिति देने वाला राज्य  जिनके विचार आज भी प्रासंगिक, जीवंत और सामयिक हैं । वे ईमानदारी और नैतिकता के पर्याय थे । छोटी सी कुटिया में रहने वाले चाणक्य दुर्बलों के उत्थान, निर्धन, अपंग, मजदूर, स्त्रियों आदि के भरण पोषण एवम् सुरक्षा के प्रबल पक्षधर थे । महाअमात्य / प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने अपने राज्य में ऐसे अनेक कार्य और योजनाएं संचालित किए ।
उनके मार्गदर्शन में एक लोक कल्याणकारी राज्य , सुशासन की स्थापना की थी । खंड खंड में बंटे भारत को हिमालय से समुद्र पर्यंत तक एक सूत्र में बांधने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया ।
क्या देश की सभी जातियों को भी इन पुण्यात्माओं का पावन स्मरण वैसे ही नहीं करना चाहिए जैसे अन्य महापुरुषों की जयंती, प्राकट्य दिवस पर सभी देशवासी एक दूसरे को शुभकामनाएं देकर नमन करते हैं ।
यह कोई बहुत पुरानी घटना नहीं है , चीनी पर्यटक, विद्वानों ने उनसे साक्षात्कार किया । अनेक विद्वानों ने उनसे प्रत्यक्ष भेंट और शास्त्रार्थ किए । आज सहज उपलब्ध अनेकों पुस्तकें, उनके द्वारा लिखित/ प्रतिपादित श्लोक, सूक्तियां, सिद्धांत पढ़कर भारतवासी उनके बारे में अपनी धारणा को नवीन रूप प्रदान कर सकते हैं ।
महर्षि चाणक्य ने नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र के अलावा ज्योतिष पर विष्णूगुप्त सिद्धांत, आयुर्वेद पर वैद्यजीवन जैसी अनेक पुस्तकें लिखी हैं । दोनों ही प्रातः स्मरणीय व्यक्तित्व ने उस समय के गरीब, अपेक्षित, दीन हीन , असहाय, वनवासी, दूरस्थ अंचल के निवासी , व्यवसाई अर्थात साधारण प्रजा का हित संवर्धन किया था ।