कांग्रेसी अस्तित्व का एक ही सहारा
कांग्रेस की स्वीकारोक्ति अजय सिंह
संपादक प्रमोद दुबे की विशेष रिपोर्ट
भोपाल। कहते हैं कि ग्वालियर चंबल संभाग की राजनीतिक स्थितियां हमेशा एक ही नहीं रहती, एक तरफ जहां 2 वर्ष पूर्व विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सीटों में ग्वालियर चंबल संभाग अंतर्गत जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी वहीं दूसरी और वर्तमान का माहौल कांगे्रस के लिए चुनौतीपूर्ण रहेगा, चुनौती एक तरफ से हो तो भी समझ में आती है परंतु चुनौती का राजनीतिक माहौल इस बार असमंजस से भरा हुआ दिखाई देता है। एक तरफ ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस के सबसे बड़े क्षत्रप ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं। वहीं दूसरी ओर पूर्व में जीते हुए उनके इस संभाग से 16 विधायक भी भारतीय जनता पार्टी में उन्हीं के साथ दामन थाम चुके हैं, ऐसी विपरीत और कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में एक तरफ असमंजस का माहौल है दूसरी तरफ जनता का मौका भी सामने है, इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि लगभग 2 वर्ष पहले हुए विधानसभा चुनाव की माई के लाल की आग अभी तक संभाग से समाप्त नहीं हुई, ऐसी स्थिति में कांग्रेस के लिए एक बार फिर से स्वर्णिम अवसर है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की मजबूत पकड़ के बाद भी वहां कांग्रेसी अपना बेहतर प्रदर्शन कर सकते हंै। परंतु स्थितियां इतनी अनुकूल भी नहीं हैं।
अजय सिंह ही क्यों स्वीकार?
वर्तमान राजनीतिक परिवेश में ग्वालियर चंबल संभाग में अजय सिंह का प्रभाव होना एवं दिखाई देना, यह राजनीतिक विश्लेषण थोड़ा सुनने में अजीब लगता है , परंतु यही सच है कि ग्वालियर चंबल संभाग में अजय सिंह उर्फ राहुल भैया का प्रभाव ग्वालियर चंबल संभाग में ग्रामीण क्षेत्रों की विधानसभा की सीटों पर विशेष रुप से घर-घर चौपाल चौपाल तक रहा है, स्वर्गीय अर्जुन सिंह के प्रति ग्वालियर चंबल संभाग के कई क्षत्रिय नेता उनका समर्पण एवं उनसे जुड़े लोगों की कर्तव्य परायणता को आज तक नहीं भूले और पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह के प्रति लगाव के साथ-साथ उनके पुत्र अजय सिंह का पिछले 15 वर्षों में ग्वालियर चंबल संभाग के ग्रामीण क्षेत्रों में सतत संपर्क रहा है। विशेष रूप से विधानसभा चुनावों के दौरान कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां पर अजय सिंह राहुल भैया ने कई दिनों तक उपरोक्त विधानसभा सीटों पर चुनाव प्रचार किया और जिन विधानसभा सीटों पर उनका चुनाव प्रचार हुआ उन सीटों पर 90 प्रतिशत जीत हासिल हुई, कांग्रेसी एवं भाजपा के कार्यकर्ताओं में ग्वालियर चंबल संभाग में अजय सिंह को हमेशा एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया गया और उन्होंने यह चुनौती भी स्वीकार की क्योंकि उनका व्यवहार एक कार्यकर्ता के साथ साथ नेता से कहीं अधिक सरल, सहज एवं व्यवहारिक रहा है। उनकी सरलता, सहजता एवं व्यवहारिकता के कारण ही उन्हें ग्वालियर चंबल संभाग में आज भी स्वीकार किया जाता है। इस मामले में कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अजीत भदौरिया बताते हैं कि राहुल भैया के व्यवहार के कारण आज भी ग्वालियर चंबल संभाग के ग्रामीण क्षेत्रों में विधानसभा सीटों पर उनकी पकड़ घर-घर और परिवार-परिवार तक है। इस बात में भी कोई अतिशयोक्ति नहीं कि आज अजय सिंह राहुल भैया से जुड़े हुए लोग चाहे कोई भी राजनीतिक परिस्थिति आ जाए परंतु उनका दामन छोड़कर नहीं जाते हैं और इसका सीधा-सीधा कारण यह है कि उनके पिता अर्जुन सिंह ने हमेशा अपने कार्यकर्ताओं को अपने पुत्र एवं अपने भाई के समान समझा। अर्जुन सिंह ही वह एकमात्र नेता थे जिन्होंने हमेशा कार्यकर्ता को तन-मन-धन से आगे बढ़ाया। उनके नेतृत्व एवं छवि को उनके पुत्र अजय सिंह राहुल भैया ने आज तक जीवित रखा है। संभाग के लोग बताते हैं कि ग्वालियर चंबल संभाग के ग्रामीण क्षेत्रों में राहुल भैया का खास प्रभाव है।
इन विधानसभा सीटों पर होगा चुनाव
ग्वालियर चंबल संभाग में आने वाले समय में संभवत स्थितियां दिखाई दे रही है कि कोरोनावायरस के चलते चुनावों को 2 माह तक आगे बढ़ाया जा सकता है, ऐसी स्थिति में कांग्रेसी एवं भारतीय जनता पार्टी दोनों के लिए पर्याप्त समय होगा कि वह अपने-अपने उम्मीदवार सोच समझकर मैदान में उतारें और उनके लिए जीतने के साथ-साथ चुनाव की रणनीति की तैयारी कर सकें, ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद उनके जिन समर्थकों ने इस्तीफा दिया है उनमें ग्वालियर चंबल संभाग के 16 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें गुना से बमोरी, अशोकनगर से अशोकनगर एवं मुगावली, शिवपुरी जिले से पोहरी एवं करेरा, दतिया से भांडेर, ग्वालियर से लश्कर पूर्व एवं ग्वालियर, डबरा, मुरैना से मुरैना एवं सुमावली, दिमनी मेहगांव, गोहद सहित जोरा कुल 16 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं। वहीं दूसरी और बता देना उचित होगा कि इन सभी सीटों पर क्षत्रिय एवं ब्राह्मण बाहुल्य मतदाताओं का अपना विशेष प्रभाव है। इसके अतिरिक्त आरक्षित सीटों पर भी ब्राह्मण एवं क्षत्रियों का भी सम्मान होने के कारण सामान्य वर्ग के लोग जिस तरह मतदान करते हैं उस तरह की जीत लगभग तय मानी जाती है। ऐसी स्थिति में चाहे ग्वालियर शहर की बात हो अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित विधानसभा सीटों की बात। कुल मिलाकर क्षत्रिय नेताओं की ओर से एक तरफ जहां भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर करेंगे। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की तरफ से मात्र अजय सिंह राहुल भैया के अलावा कोई विकल्प एवं स्वीकारोक्ति विकल्प कांगे्रस के पास दिखाई नहीं देता। इस स्थिति में अजय सिंह राहुल भैया को ग्वालियर चंबल संभाग में उतारना कांग्रेस के लिए एक बड़ी रणनीति एवं बागी हुए विधायकों के लिए बेहतर जवाब साबित हो सकती है। अब देखना यह होगा कि भाजपा की रणनीति का सामना कांग्रेस किस तरह करती है।
नरेंद्र सिंह के मुकाबले अजय सिंह बेहतर स्वीकारोक्ति
ग्वालियर चंबल संभाग की लगभग 90 प्रतिशत सीटों पर उपचुनावों के अंतर्गत क्षत्रिय वोट बैंक के ध्रुवीकरण के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी के समक्ष राष्ट्रीय स्तर का एकमात्र नेता नरेंद्र सिंह तोमर का प्रभाव ऐसा है कि वह भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़े रहकर 90 प्रतिशत उपचुनाव विधानसभा सीटों को जिताकर लाने की स्थितियां रखते हैं। ऐसी स्थिति में कोई भी क्षत्रिय नेता भारतीय जनता पार्टी के सामने कांग्रेसी की ओर से दिखाई नहीं देता। ग्वालियर चंबल संभाग की क्षेत्रीय एवं क्षत्रिय स्थितियां कांग्रेस के लिए कोई खास सफलता के रूप में संकेत दिखाई नहीं देते, ऐसी स्थिति में एकमात्र नेता कांग्रेस के लिए अजय सिंह राहुल भैया के रूप में ग्वालियर चंबल संभाग में स्वीकारोक्ति बन चुके हैं। अगर कांग्रेस को ग्वालियर चंबल संभाग में उपचुनावों में जीत हासिल करनी है तो दिग्विजय सिंह की नफरत के सामने इस संभाग में अजय सिंह राहुल भैया की स्वीकारोक्ति को स्वीकार करते हुए उन्हें कमान सौंपना ही एक बेहतर विकल्प होगा। क्षत्रिय नेताओं के रुप में कांग्रेस के लिए भी अजय सिंह राहुल भैया क्षत्रिय नेता का कांग्रेस की ओर से बेहतर प्रदर्शन दे पाएंगे, क्योंकि भाजपा के विरुद्ध एकमात्र रणनीति माई का लाल शब्द को भावनात्मक रूप से जगाने की होगी, अगर अजय सिंह राहुल भैया इस रणनीति में सफल हो गए तो 90 प्रतिशत सीटें कांग्रेस को मिल जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं।
सुनने में अजीब परंतु हकीकत है: पूर्व विधायक
ग्वालियर चंबल संभाग में होने वाले उपचुनाव को लेकर वल्लभ भवन समाचार पत्र द्वारा जब एक पूर्व विधायक एवं ग्वालियर चंबल संभाग के जाने-माने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस के पास अब कोई क्षत्रिय नेतृत्व नहीं रहा, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के विषय पर उन्होंने कहा कि अगर वह आ गए तो और बंटाधार निश्चित है, ऐसी स्थिति में अजय सिंह राहुल भैया के विषय में नाम सामने आते ही आश्चर्य जरूर लगता है परंतु यह सत्य है और यही स्वीकार होगा, उनकी और उनके पिता के व्यवहार को आज तक ग्वालियर चंबल संभाग के पुराने नेता नहीं भुला पाए हैं, आज भी कार्यकर्ताओं से लेकर पुराने लोग विशेष रूप से क्षत्रिय समाज के लोग उनसे अंतरात्मा से जुड़े हुए हैं। पूर्व विधायक एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने स्पष्ट रूप से आरोप लगाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के विषय में कहा कि ऊर्जावान एवं मजबूत नेताओं को आगे नहीं बढ़ाने के कारण ही कांग्रेस का पतन पूरी तरह मध्यप्रदेश में हो चुका है और अगर आगे भी यही स्थिति जारी रही तो 15-20 साल तक कांग्रेस का कोई भविष्य मध्यप्रदेश में नहीं रहेगा।
नहीं भूले लोग, भाजपा का माई का लाल
ग्वालियर चंबल संभाग की जनता का मन, स्थिति एवं लंबे समय तक उनके दिमाग में चुनौती का बैठ जाना ग्वालियर चंबल संभाग की प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है। इस स्थिति में इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ग्वालियर चंबल संभाग में पूर्व विधानसभा चुनाव की कांग्रेस पार्टी की जीत में माई का लाल का योगदान 50 प्रतिशत से अधिक रहा, और इस तथ्य को भी स्वीकार करना होगा कि आज भी ग्वालियर चंबल संभाग में माई का लाल शब्द को लोग भूले नहीं है, ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी के लिए भी स्थिति में चुनौतीपूर्ण है, भारतीय जनता पार्टी द्वारा जब सिंधिया समर्थक कांग्रेसियों को मैदान में उतारा जाएगा तब भी यही चुनौती सामने आएगी और जनता के मन में माई का लाल शब्द एक चुनौती स्वीकार कर लेने की स्थिति में दिखाई देगा। अब देखना यह होगा कि इस माई का लाल शब्द का फायदा एक बार फिर से ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेसी अपनी तरफ किस तरह लेकर आती है, परंतु इसकी संभावना भी बहुत ही कम दिखाई देती है, इसका महत्वपूर्ण कारण है कांग्रेस द्वारा आने वाले विधानसभा चुनावों में सामने लाए गए प्रत्याशी। क्योंकि कमलनाथ के समर्थक तो ग्वालियर चंबल संभाग में कोई है नहीं, अब ऐसी स्थिति में केवल दिग्विजय सिंह ही फैसला करेंगे कि किसको विधानसभा का टिकट दिया जाता है। ऐसी स्थिति में दिग्विजय सिंह को ग्वालियर चंबल संभाग में स्वीकार करना अर्थात कांग्रेस द्वारा ग्वालियर चंबल संभाग में बड़ी पराजय का संकेत। यहां एक बार फिर से वही प्रश्न सामने आता है कि आखिर इसका विकल्प क्या है?
आपसी गुटबाजी के आगे चुनौती
ग्वालियर चंबल संभाग में कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती आपसी गुटबाजी है, एक तरफ जहां सिंधिया राजघराने का कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर प्रभाव है, वहीं दूसरी ओर ग्वालियर चंबल संभाग से जुड़े हुए ग्रामीण क्षेत्रों में अर्थात ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी हुई विधानसभा सीटों पर विशेष रूप से दिग्विजय सिंह खेमे से जुड़े उनके समर्थकों को उन्होंने आगे बढ़ाने का अनवरत कार्य किया है, परंतु आज स्थिति विपरीत है। पूर्व विधानसभा चुनावों की सफलता के मामले में कांग्रेस की स्थितियां आज बिल्कुल विपरीत हैं, कांग्रेस पार्टी के लिए अब दिग्विजय सिंह ग्वालियर चंबल संभाग में पूरी तरह शून्य साबित हो चुके हैं, अगर गलती से भी कांग्रेस पार्टी ग्वालियर चंबल संभाग में उनका उपयोग प्रचार-प्रसार एवं रणनीति के क्षेत्र में करती है तो ग्वालियर चंबल संभाग में दिग्विजय सिंह की नकारात्मक छवि के चलते बची कुची सीटें और कांग्रेस के पास से समाप्त हो चुकी होंगी, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के लिए सिंधिया अपने आप में एक बड़ी चुनौती भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ सामने दिखाई देंगे, इस स्थिति में बेहतर विकल्प क्या होगा?
संभाग में क्षत्रिय नेतृत्व में भाजपा मजबूत
भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ा जीत का कारण एवं सिंधिया समर्थक विधायकों की मजबूत जीत का दावा इस संभाग में क्षत्रिय नेताओं का भाजपाई प्रभाव रहा है, ज्ञात हो कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर चंबल संभाग में क्षत्रिय समाज की ओर से स्वीकार्य एवं मजबूत राष्ट्रीय स्तर के नेता बनकर सामने खड़े हुए हैं, ग्वालियर चंबल संभाग में लगभग सभी विधानसभा सीटों पर क्षत्रिय समाज के बीच उनका हृदय से स्वागत है, इसलिए इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में नरेंद्र सिंह तोमर की स्वीकारोक्ति सिंधिया समर्थक विधायकों को जिताने के लिए काफी है, और यह भी सच है कि ग्वालियर चंबल संभाग की 90 प्रतिशत सीटों पर क्षत्रिय एवं ब्राह्मणों का जबरदस्त प्रभाव है, इसलिए भारतीय जनता पार्टी के लिए ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया समर्थक लगभग 16 सीटों पर जीत 90 प्रतिशत तय मानी जा रही है।
ग्वालियर चंबल में माई के लाल का दमखम अभी जारी है