विगत 48 घंटों के अंतराल में रीवा शहर के बीचोंबीच एक देवी माता मंदिर के पुजारी के साथ हुई मारपीट के मामले ने जैसे ही जोर पकड़ा और सोशल मीडिया सहित प्रिंट मीडिया में यह मामला हाईलाइट हुआ, 48 घंटे ही नहीं हो पाए थे कि वहां के स्थानीय नेता एवं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मंत्री सक्रिय हो गए और 48 घंटों के अंतराल में तत्कालीन दोषी टीआई को तुरंत प्रभाव से लाइन अटैच ही नहीं किया वरन निलंबित भी कर दिया गया। वहीं दूसरी और हम चर्चा करते हैं शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील अंतर्गत 25 से 28 मार्च के बीच हुए सनसनीखेज एवं अमानवीय घटनाक्रम के मामले में क्या कार्रवाई हुई?
जवाब आता है 0
सवाल फिर से सामने आ जाता है कि आखिर क्यों ?
जवाब एक ही सामने आता है...
नामर्दानगी, नमर्दानगी और ना मर्दानगी..
लिखने में, प्रकाशन करने में, बड़ा अजीब सा लगता है।
परंतु यही हकीकत है तो क्या करें।
एक तरफ रीवा शहर के एक मंदिर पर पुजारी के साथ हुई टीआई के द्वारा मारपीट पर तुरंत प्रभाव से वहां उपस्थित पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल द्वारा नाराजगी व्यक्त की गई। प्रशासन की इतनी हिम्मत नहीं थी की टीआई को निलंबित ना करें, तुरंत प्रभाव से टीआई का निलंबन हुआ लाइन अटैच कर दिया गया। वहीं पोहरी तहसील की राक्षसी प्रवृत्ति धारित एसडीएम पल्लवी वैद्य द्वारा पोहरी के आसपास के लगभग आधा दर्जन पुजारियों को जानवरों की तरह न केवल मारा गया वरन किसी मुगलिया सल्तनत के समान बाबरी अंदाज में मंदिरों पर हमला भी किया गया। वल्लभ भवन समाचार पत्र द्वारा यह मामला लगातार उठाया गया, विगत तीन दिवस पूर्व प्रदेश के मुख्यमंत्री की नाराजगी एवं यह मामला संज्ञान में आते ही कलेक्टर शिवपुरी एवं पुलिस अधीक्षक ने पोहरी पहुंच कर इस मामले की प्राथमिकता से जांच की और जांच करने के बाद मामला आज दिनांक तक लंबित कर दिया गया। लेकिन मामला आज दिनांक तक लंबित क्यों है? लगभग 10 दिन हो चुके हैं परंतु प्रथम दृष्टया दोषी एसडीएम पल्लवी वैद्य को आज दिनांक तक निलंबन तो छोड़ो वहां से हटाया तक नहीं गया। इसे वहां की जनता से राजनीतिक दलों से अथवा अपने आप को पूर्व विधायक कहने वाले अथवा भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए बजरंग दल हो या विश्व हिंदू परिषद इनसे सवाल पूछना या इनके सामने सवाल आ जाना, क्या गलत है! एक छोटे से अधिकारी जो तहसील स्तर पर मठाधीश बन कर बैठ गया हो, और जिले के मठाधीश अफसरों ने उसे आशीर्वाद दे दिया हो, उस तहसील के भाजपा के कार्यकर्ता हो अथवा नेता, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं अथवा कांग्रेस के नेता, हिंदूवादी संगठन हो अथवा हिंदूवादी संगठन के नेता एवं कार्यकर्ता, अब सोचना आपको ही है कि मर्द किसे कहें और नामर्द किसे ?
अब यह तो स्वाभाविक निर्णय है कि शिवपुरी जिले में जहां सिंधिया राजघराने का एकतरफा राज है, वहीं दूसरी ओर दिग्विजय सिंह से लेकर हर गुट के नेता अपने आप को मर्द साबित करने में हर समय लगे रहते हैं, मौका परस्ती की राजनीति अपने आप में खत्म होने का नाम नहीं लेती। वहां रीवा शहर के सरल सहज एवं बेहद व्यवहारिक कही जाने वाले राजेंद्र शुक्ल की कार्रवाई को मैं सलाम ही नहीं करता वरन उन्हें मर्द भी मानता हूं। आखिर क्यों उन्हें मर्द न माना जाए। क्या शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील में जनता को एक तरफ भी कर दे तो दोनों ही पार्टियों के नेता हो या हिंदूवादी संगठन के तथाकथित पदाधिकारी, इस मामले की जानकारी सभी को है, 10 दिन हो चले आखिर खामोशी क्यों ? क्या यह जिम्मेदारी जिसमें प्रशासन का एक अधिकारी सार्वजनिक रूप से मंदिरों के पुजारियों को नग्न कर बेदर्दी से मारता पीटता है ऐसे संवेदनशील विषय को सुर्खियां बनाना एवं दोषी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई करना, क्या पत्रकारों
अथवा मीडिया जगत अथवा सोशल मीडिया से जुड़े हुए कर्मियों की ही जिम्मेदारी है।
तो फिर यह नेता नेता क्यों कहलाते हैं?
मेरी छोटी सी समझ और रीवा में हुई मंदिर के पुजारी के साथ घटना के बाद कार्रवाई, वहीं दूसरी ओर शिवपुरी जिले की पोहरी तहसील में अपने आपको धुरंधर नेता कहे जाने वाले नेताओं की इस विषय में खामोशी मुझे यह स्पष्ट लिखने में प्रेरित करती है। शिवपुरी जिले से जुड़े हुए एवं पोहरी तहसील के स्थानीय नेता नामर्द नहीं तो और क्या है। बहरहाल जानकारी यह है, कि जब पोहरी तहसील के इस संवेदनशील मामले पर किसी भी तरह की कार्रवाई सामने नहीं आई है, तो स्वयं पीडि़त पुजारियों ने अपने महंतों एवं अखाड़ों का सहारा लिया है। अब देखना यह है कि नेताओं की नामर्दानगी तो साबित हो चुकी है, हिंदू धर्म से जुड़े हुए अखाड़े एवं महंतों की फौज आने वाले समय में क्या रूप दिखाती है, शेष शुभ है।
जनाब। वहां राजेंद्र शुक्ल थे, यहां नामर्द नेताओं की फौज है