प्रमोद दुबे सुप्रीम कोर्ट में हार के बाद
मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक के उस दौर को आज भी याद रखा जा सकता है, और संभवत कल भी याद रखा जाएगा।
जब मध्य प्रदेश के 6 कैबिनेट मंत्रियों सहित कुल 22 विधायकों के अचानक पंख लग जाते हैं ,और वह उड़कर बेंगलुरु जा पहुंचते हैं। जहां से उड़े, उन्हें पता भी नहीं चलता, और पता भी कैसे चलता, मदहोशी जो छाई हुई थी। बहराल उस दौर को हमेशा एक मजाक के रूप में ही हास्यास्पद तरीके से याद किया जाएगा ।
सबसे अभी अधिक गंभीरता का विषय सोचनीय यह है किस प्रदेश का मुख्यमंत्री एक योद्धा के रूप में भारतीय राजनीति के पटल पर 40 वर्षों से चमकता हुआ सितारा रहा हो, और निर्विवाद छवि के साथ उसने कभी हार ना मानी हो, ऐसी शख्सियत को मूर्खता के उस दौर में प्रदेश की जनता भी देख रही थी, परंतु वह भूल गए ।
क्योंकि सिर पर जब बंटाधार का साया हो तो निश्चित रूप से इतना तो तय है कि बंटाधार होगा ही, वहीं दूसरी ओर ग्रह, नक्षत्र चारों तरफ मूर्ख लोगों की चौकड़ी में विराजमान हो , तो चारों तरफ बर्बादी की दिशा में कव्वे की कांव-कांव ही नजर आएगी ।
और वही हुआ, कौवा कांव-कांव करते रहे, मूर्खता पूर्ण कार्यवाही जारी रही, राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया, आदेश के पालन में मूर्खतापूर्ण पत्राचार भी जारी रहा, पागलपन की बेइंतहा कोशिश बैंगलोर तक पहुंच गई ,
ठुकाई, पटाई , पिटाई की नौटंकी प्रदेश में ही चालू रहती तो भी ठीक था, नौटंकीबाज तमाशा दिखाने के लिए मध्यप्रदेश छोड़कर बेंगलुरु की जमीन पर जा पहुंचे , वहां भी लंबी नौटंकी चली, लगभग 3 दिन तक भूख हड़ताल की तमाशा गिरी, पागलपंती ,पूर्ण नौटंकी , सब कुछ चलता रहा ।
अंततः मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और दो दिवस के पश्चात ही सुप्रीम कोर्ट से टेस्ट कराने का आदेश जारी हुआ, और सरकार सुप्रीम कोर्ट में पहली बार हारी, तो एहसास हुआ कि हम ही गलत थे ।
अंत में भारतीय जनता पार्टी पार्टी के सरताज शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली, अब रही बात फ्लोर टेस्ट कराने के संबंध में कमलनाथ जी की उस अपील की जिसमें उन्होंने फ्लोर टेस्ट कराने संबंधी आदेश जो प्रदेश के राज्यपाल ने उस समय दिया था, उसे चुनौती देने की।
आखिर में इस याचिका पर भी मुंह की ही खाना पड़ी, कमलनाथ जी सुप्रीम कोर्ट में याचिका अंतर्गत भी हार चुके हैं। याचिका खारिज हुई।
सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर मूर्खता पूर्ण व्यवहार के साथ इस तरह की याचिकाओं का आखिर औचित्य क्या था ?
इस तरह की याचिकाओं के सामने वैधानिक संवैधानिक एवं कानूनी पक्ष कितना कमजोर या प्रबल था ?
क्या कांग्रेस के बड़े-बड़े कानूनी विद जानकार एवं अपने आप को राष्ट्रीय स्तर का वकील कहने वालों के अंदर इतनी समझ नहीं थी, कि इस तरह की याचिकाओं का अंत क्या होगा ?
कुल मिलाकर सच्चाई तो यह है कि कमलनाथ जी आपको प्रदेश के बंटाधार महानुभावों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ नेताओं ने ही मध्य प्रदेश की राजनीति में विफल एवं मजाक का विषय बना दिया ।
कुल मिलाकर कमलनाथ अर्थात पूर्व मुख्यमंत्री जी की जितनी फजीहत होनी थी पहले भी हुई और आगे भी होती ही चली गई । हालांकि हमारे मित्र बताते हैं ,
कमलनाथ जी जैसा सज्जन, एवं सच्चा इंसान शायद मध्य प्रदेश की राजनीति में ना तो कभी आया है और ना ही कभी आएगा
हम इस बात को भी स्वीकार करते हैं , इसीलिए तो उनका यह हाल है ।
ईश्वर से एक ही प्रार्थना है, लॉक डाउन है, शायद कांग्रेसका लंबे समय तक, 15 अप्रैल को कैबिनेट का गठन है,
श्रीमान बंटाधार जी, आपको एक बार फिर से बधाई ।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जी की अनवरत फजीहत के लिए ।
आशा रखता हूं आगे भी जारी रहेगी ।
सदैव आपका ।
प्रमोद दुबे