सौ साल पहले प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क़रीब दो करोड़ लोग मारे गए थे. उस युद्ध के परिणामों से दुनिया अभी उबरी नहीं थी कि उसे अचानक एक और भयानक संकट ने घेर लिया, और ये था फ़्लू का प्रकोप.
'स्पेनिश फ़्लू' नाम से जानी जाने वाली यह महामारी पश्चिमी मोर्चे पर स्थित छोटे और भीड़ वाले सैन्य प्रशिक्षण शिविरों में शुरु हुई.
इन शिविरों और ख़ासतौर पर फ़्रांस की सीमा के क़रीब की ख़ंदकों में गंदगी की वजह से ये बीमारी पनपी और तेज़ी से फैली.
युद्ध तो नवंबर 1918 में समाप्त हो गया था, लेकिन घर वापिस लौटने वाले संक्रमित सैनिकों के साथ यह वायरस भी अन्य क्षेत्रों में फैलता गया. इस बीमारी की वजह से बहुत सारे लोग मारे गए. माना जाता है कि स्पेनिश फ़्लू से पांच से दस करोड़ के बीच लोग मारे गए थे.
दुनिया में उसके बाद भी कई महामारियां फैलीं लेकिन इतनी घातक और व्यापक कोई और महामारी नहीं रही.
पिछली सदी की शुरुआत में जिस वक़्त पहला विश्व युद्ध ख़त्म हो रहा था, तो एक वायरस ने दुनिया पर हमला बोला था. जिसने दुनिया की एक चौथाई आबादी को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था. इस महामारी को आज हम स्पेनिश फ्लू के नाम से जानते हैं. पूरी दुनिया में इस महामारी से पांच से दस करोड़ लोगों की जान चली गई थी.
साल 1918 में इस महामारी के दौरान ही अमरीका के कई शहर लिबर्टी बॉन्ड परेड की तैयारी कर रहे थे. इस परेड के ज़रिए यूरोपीय देशों को युद्ध में मदद करने के लिए पैसे जुटाए जा रहे थे. फ़िलाडेल्फ़िया और पेंसिल्वेनिया शहरों के प्रमुखों ने महामारी के बावजूद ये परेड करने का फ़ैसला किया.
जबकि इन शहरों में रह रहे 600 सैनिक पहले से ही स्पेनिश फ़्लू के वायरस से पीड़ित थे. फिर भी यहां परेड निकालने का फ़ैसला लिया गया. वहीं सेंट लुई और मिसौरी राज्यों ने अपने यहां होने वाली परेड रद्द कर दी. और लोगों को जमा होने से रोकने के लिए अन्य क़दम भी उठाए.