रुपेश उपाध्याय , डिप्टी कलेक्टर श्योपुर
सरे राह चलते चलते ......
यूँ तो ग्वालियर से शिवपुरी का रास्ता है ही आकर्षक , पर वर्षात और ग्रीष्म में इसके अलग अलग रंग हो जाते है।
वर्षात में जंगल हरियाली ओढ़ लेता है और नदी, नाले , पहाड़ मस्ती से झूम उठते है। वहीं ग्रीष्म में हरियाली गायब हो जाती है।
नदी नाले रीते रीते और पहाड़ उदास से लगने लगते है। केबल दहकते पलाश के पेड़ ही इस बरसती गर्मी में कुछ हद तक शीतलता का अहसास कराते है।
दो तीन महीने बाद आज इस सड़क से गुजरने का अवसर मिला। पनिहार पार करते ही हम ऊँचे घाट पर चढ़ जाते है ऐसा लगता है किसी पहाड़ी टेबल टॉप पर यात्रा कर रहे हो।
घाट उतरते ही घाटीगाँव और फिर सिरसा की चढ़ाई। यहाँ से बायीं ओर एक रोड़ आरोन , रानीघाट होते हुए नरवर की ओर मुड़ जाती है। वहीं दाईं ओर दूसरी रोड़ जाखोदा होते हुए डांडा खिरक , चूना खो की तरफ जाती है।
सिरसा के बाद चराई रेहट की पर्वत श्रृंखला स्वागत के लिए तत्पर दिखी । इसके बाद मोहना कस्वा है। जिसने अपने स्थल महत्व के कारण ही गांव से कस्वे का रूप ले लिया है।
श्योपुर , शिवपुरी , इंदौर , भोपाल जाने बाली बसों का यह हाल्ट है। उन बस यात्रियों के कारण ही यहाँ की भजिया और गुजिया ने प्रशिद्धि पाली है।
मौसम अनुसार यहां ककड़ी , जामुन , सिघाड़े भी यहाँ उपलब्ध हो जाते है। देखते देखते मोहना आसपास के गाँव के लिए एक बाजार का रूप ले लिया हैं।
मोहना इस दृष्टि से भी भाग्यशालीहै कि उसे महुअर , पार्वती , और डिगरी तीन तीन नदीयों का सानिध्य प्राप्त है।
शिवपुरी जिले में प्रवेश के बाद शुभाषपुरा मिला जो अब नया रूप लेता जा रहा है। धौलागढ़ फाटक का भी अपना आकर्षण है। यहाँ से कई गाँवों के लिए रास्ते जाते है।
यहाँ से एक रोड़ गोपालपुर, महेशपुर होते हुए, बैराड़ की ओर जाता है। वहीं दूसरी ओर एक रोड़ धौलागढ़, बमहारी होते हुए मगरौनी के लिए चला जाता है।
आगे 100 वर्ष से अधिक प्राचीन रियासत कालीन " गाराघाट रेस्ट हाउस " जंगल के बीच आश्रय की एकमात्र उम्मीद दिखाई देता है। जो डकैत समस्या के कारण अब अपना गौरव खो बैठा है।
आगे बढ़ते ही एक ओर बारां , टेहटा हिम्मत गढ़ की विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाएं तो दूसरी और घना जंगल। फिर नया रूप लेता सतनबाड़ा।
NTPC का इंजीनियरिंग कालेज , खेरे बाले हनुमान जी का मंदिर और भौंरोंदास जी महाराज का आश्रम अब यहाँ की पहिचान बन गया है।वास्तव में अब यही शिवपुरी का गेट वे है।
ख़ूबत घाटी के शार्प टर्न पर सभी साबधानी बरतते है , पर फिर भी यहाँ अक्सर दुर्घटनाएं घटित होती रहती है । यह घाटी , ख़ूबत बाबा का मंदिर हमेशा से जानी मानी जगह रही है।,
खाद्यान्न सामग्री के लिए राहगीरों की ओर ताकते हुए बंदर /लंगूरों के झुंड के झुंड यहाँ हमेशा देखे जा सकते है।
शिबपुरी के समीप पहुँचते ही माधव नेशनल पार्क , परमहंस आश्रम और फिर शिवपुरी नगर है । यहाँ अनेक आकर्षक स्थान है ।
शिवपुरी से 125 किमी और आगे हमें अशोकनगर तक जाना था। अतः हमने शिवपुरी नगर को नमस्कार कर आगे की राह पकड़ी।
कोलारस , लुकबासा , बदरबास को हमने बाहर से ही नमस्कार किया । आगे बढ़ते हुए हम म्याना पहुँचे। यहाँ से हम बाएं मुड़ कर सड़क अशोकनगर को जाता है । हम उसी तरफ चले ।
नई सराय , और फिर शाडोरा तक रास्ते भर पलास और खजूर के पेड़ हमारे साथ रहे। शाडोरा के पास सड़क किनारे एक बाबड़ी देखी।
यह बावड़ी मालवा के खिलजियों के स्थापत्य से मिलती जुलती लग रही थी।शाडोरा के बाद अशोक नगर करीब ही था । कुछ ही देर बाद चलते चलते हम अशोकनगर पहुँच गए।