सरकार से लेकर मिल मालिक तक स्वार्थी और बेदर्द । 80% बोले नहीं लौटेंगे कभी जीवन में ।
विशेष रिपोर्ट ।
कोरोना वायरस संक्रमण काल में पिछले 1 महीने के अंतराल में महाराष्ट्र से आने वाले मजदूरों के जो दृश्य सड़कों पर दिखाई दिए, उन दृश्यों को लेकर कई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं दैनिक समाचार पत्रों के पत्रकारों ने जो रिपोर्ट विश्लेषणात्मक रूप से प्रकाशित की एवं जो हालात सड़कों पर दिखाई दिए , रोड दुर्घटनाओं में एक्सीडेंट एवं सड़कों पर तड़पते हुए मजदूरों की दर्दनाक तस्वीरें के पीछे से जो सच सामने आया है वह केवल इतना और इतना ही है । महाराष्ट्र सरकार बे दर्द और वहां के मील मालिक बेहद स्वार्थी हैं । आज मजदूरों की जो हालात सड़कों पर है अथवा मौत हो रही है उसके जिम्मेदार भी महाराष्ट्र की ही सरकार एवं वहां के लोग हैं । यह शब्द किसी समाचार पत्र की हेडलाइन नहीं बल्कि महाराष्ट्र से लौट रहे 90% मजदूरों के है ।
महाराष्ट्र से लाठी और अपमान । मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश में भोजन और सम्मान ।
इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मध्य प्रदेश सरकार में विशेष रूप से सामाजिक संस्थाओं से लेकर शासकीय अथवा अर्ध शासकीय एवं सरकार की योजनाओं के अंतर्गत महाराष्ट्र से लगने वाले मध्यप्रदेश के बॉर्डर सेंधवा अथवा सेंधवा से आगे निकलकर पिछले 1 महीने के अंदर जिस तरह से स्वागत सत्कार मजदूरों का हुआ है विशेष रुप से इंदौर के लोगों ने दिल खोलकर 40 डिग्री से अधिक तापमान में अपने आप को मजदूरों के लिए समर्पित किया उसकी तारीफ राष्ट्रीय स्तर पर हो रही है । जिससे यह साबित होता है कि अगर सामाजिक संस्थान एवं आम आदमी चाहे तो किसी को भी कष्ट ना होने दें । और इस बीच में सरकार का योगदान तो है ही । महाराष्ट्र से राष्ट्रीय स्तर पर किए गए सर्वे के अनुसार सर्वाधिक मजदूर आए और सर्वाधिक मजदूरों की मौत भी महाराष्ट्र से आने वाले मजदूरों के रूप में हुई है । इस स्थिति में अधिकांश मजदूरों ने कहा कि हमें महाराष्ट्र पुलिस ने लाठियां दी और मध्य प्रदेश पुलिस ने रोटी और सम्मान । वही उत्तर प्रदेश सरकार एवं वहां की पुलिस ने हमें वापस अपने घर बुलाकर सम्मान दिया है।
सेंधवा बॉर्डर से लगा अपने वतन में आ गए ।
प्रवासी मजदूरों का पिछला 7 दिनों का सड़कों पर चलते हुए अपना अनुभव बताता है, जो मध्य प्रदेश के कई समाचार पत्रों ने प्रकाशित की है उनकी खबरों के अनुसार मध्यप्रदेश के सेंधवा बॉर्डर पर ही पहुंचते हुए मजदूर कहते हैं कि हमें ऐसा लगता है कि हम अपनी सीमा अर्थात अपने वतन में आ गए हो । मध्य प्रदेश पोर्टल में घुसते ही चाय नाश्ते से लेकर पानी एवं इंदौर पहुंचते-पहुंचते हर 1 किलोमीटर पर जिस तरह स्टाल लगे हुए हैं । उनको देखते हुए ऐसा कहीं नहीं लगता कि सरकार की तरफ से जो इंतजाम किए गए वह कमजोर है । मध्य प्रदेश सरकार ने बॉर्डर से बसों की व्यवस्था कर रखी है वहीं दूसरी ओर सामाजिक संगठन एवं आम आदमी सहित नेता एवं राजनीतिक दल के लोग भोजन एवं पानी की बराबर व्यवस्था कर रहे हैं। सात दिवस पहले जो मजदूरों का एक दल 40 मजदूरों के साथ सड़कों पर पैदल चल रहा था वह उत्तर प्रदेश के बनारस से लगा हुए एक गांव जा रहा था । राजेंद्र कुर्मी नामक एक दल ने पत्रकारों को बताया कि हमें बॉर्डर से ही चाय नाश्ता एवं पानी की सम्मानीय व्यवस्थाएं की गई एवं 3 किलोमीटर बाद ही हमें बसों की व्यवस्था द्वारा झांसी बॉर्डर तक भेजने की व्यवस्था की गई । मजदूरों के इस दल ने भी महाराष्ट्र की सरकार को जमकर कोसा ।
झांसी रक्षा बॉर्डर पर स्वागत एवं इंतजार ।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा महाराष्ट्र बॉर्डर से लेकर अथवा जो मजदूर पैदल चल दिए थे उन्हें गुना अथवा झांसी अथवा जहां भी जिस जिले में स्थानीय प्रशासन ने उन्हें बसों में बिठाया उन बसों से झांसी के रिक्शा बॉर्डर तक पहुंचा दिया गया । जहां कुछ घंटों के इंतजार के बाद उत्तर प्रदेश प्रशासन ने बसों की बेहतर व्यवस्था की थी । एवं इस व्यवस्था के द्वारा छटनी करते हुए जिले के हिसाब से यात्रियों को विठाला और अपने अपने गांव रवाना कर दिया ।
उत्तर प्रदेश में हर 10 किलोमीटर पर स्वागत ।
मध्यप्रदेश के इंदौर में जिस तरह स्वागत की परंपरा मजदूरों के स्वागत में देखी गई वहीं परंपरा उत्तर प्रदेश के झांसी से लेकर लगभग सभी सीमाओं जिनमें जिले बदलते हैं उनमें हरकत से 15 किलोमीटर तक लोग बसों को रोकते हुए नजर आए एवं रोककर पानी एवं सर्वत्र सहित भोजन के पैकेट बांट रहे थे । लगभग 300 किलोमीटर तक उत्तर प्रदेश में इसी तरह के स्वागत सत्कार के रोड पर नजारे देखे जा सकते हैं । मजदूरों द्वारा जिस तरह स्वागत सत्कार उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सामने आया लगातार मजदूर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश सरकार को दुआएं देती नजर आए वहीं महाराष्ट्र सरकार को गालियां देते हुए दिखाई दिए ।
सबसे अधिक मौत महाराष्ट्र के मजदूरों की ।
राष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा दर्दनाक तस्वीरें जिस तरह सामने आई उन तस्वीरों को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की तस्वीर आपदा काल की भयावहता को नहीं भूल सकती । परंतु पत्रकारों द्वारा किए गए राष्ट्रीय सर्व एवं विश्लेषण में चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार पहुंचाए प्रिंट मीडिया के एक ही बात सामने आई कि 90% मजदूर महाराष्ट्र से जिस तरह भगाए गए । अथवा महाराष्ट्र के लोगों से लेकर सरकार के बाद इंतजाम इन हालातों के कारण सड़कों पर मौत दिखाई दी । उसकी दोषी महाराष्ट्र सरकार सरकार ही है । जानकारी के अनुसार देश में 72% मौतों का आंकड़ा जो सड़कों पर दुर्घटना के रूप में मजदूरों का सामने आया उसमें महाराष्ट्र के मजदूरों का ही था। जो अधिकांश का बिहार एवं उत्तर प्रदेश से जुड़े हुए थे ।
80% बोले नहीं जाएंगे वापस महाराष्ट्र ।
महाराष्ट्र में रहने वाले अप्रवासी मजदूरों के संबंध में सड़कों पर चलते हुए अथवा वाहनों में सफर करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस के लोगों द्वारा जो चर्चा की गई उसमें एक ही बात सामने आई कि महाराष्ट्र सरकार बेहद कठोर एवं निर्दई है । जिस महाराष्ट्र को हमने वर्षों पीढ़ी दर पीढ़ी अपना पसीना दिया , वह सरकार हमें 2 महीने रोटी नहीं खिला पाई । मजदूरों का कहना था कि सरकार तो छोड़िए हमारे मिल मालिक जिनके यहां हमने अपनी पीढ़ियां निकाल दी वह भी हमसे जिस बदतमीजी से बोलते थे और जिस तरह अपमान करते थे ऐसा अपमान तो भिखारियों से भी नहीं किया जाता । कुल मिलाकर महाराष्ट्र के 80% मजदूर अब वापस कभी भी जीवन में महाराष्ट्र नहीं लौटेंगे ।