चंबल बीहड़ के सरताज , डकैत मोहर सिंह अब कहानियों में याद रखे जाएंगे । बीहड़ों में वीरानियां । 92 साल की उम्र में मौत ।

ग्वालियर - चंबल से अरविंद तोमर की रिपोर्ट ।



किसी समय में कहा जाता था कि ग्वालियर चंबल क्षेत्र विशेष रूप से चंबल की धरती पर कभी भी डकैत अपने आप को सुना महसूस नहीं कर सकते ,अर्थात चंबल के बीहड़ कभी भी ना तो शांत रह सकते हैंं और नाा ही चंबल की गोद सूनी रह सकती । परंतु जैसे-जैसे समय बदलता गया इस कहावत ने अपना चरित्र ही बदल दिया आज चंबल की धरती पर डकैत नाम काा शब्द लगभग समाप्त हो चुका है । अत्याधुनिक था की इस दौड़ में पुलिस के अधिकारी बताते हैं कि जब से मोबाइल क्रांति आई है तब से डकैत समस्या ही समाप्त हो गई । चंबल की धरती के लगभग अंतिम मूल बागी कहे जाने वाले मोहर सिंह  अब नहीं रहे । मोर सिंंह के के साथ ही अब  डकैत अर्थात बागी  बनने की कहानियां  एवं हकीकत समाप्त हो गई।


आतंक की कहानियों के लिए कुख्यात चम्बल घाटी में अपने आतंक की अनगिनत कहानियां और किंवदंतियां लिखने वाले आत्मसमर्पित डकैत सरगना मोहर सिंह का आज निधन हो गया । वे 92 साल के थे । आज मोहर सिंह के निधन के बाद चंबल घाटी से डकैतों का नाम एवं उनसे जुड़ी हुई कहानियां अब केवल कहानियां रह गई ।


 300 से अधिक हत्या के मामले । मगर गांधी भक्त मोहर सिंह दो लाख के इनामी ।

 

साठ से लेकर सत्तर के दशक तक चम्बल में दो सबसे बड़े डाकू गिरोह थे मोहर सिंह और माधो सिंह । मोहर सिंह ने 1972 में अपने गिरोह के साथ पगारा बांध पर जयप्रकाश नारायण से भेंट की और फिर 14 अप्रैल 1972 को गांधी सेवा आश्रम जौरा जिला मुरेना में अपने साथियों सहित गांधी जी की तस्वीर के सामने हथियार रखकर आत्मसमर्पण कर दिया । उस समय मोहर सिंह पर एमपी,यूपी,राजस्थान आदि राज्यो की पुलिस ने दो लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था जिसका आज के अनुसार मूल्यांकन दस करोड़ से अधिक है । मोहर सिंह के खिलाफ देश के विभिन्न थानों में तीन सौ से अधिक हत्या के मामले दर्ज थे लेकिन बकौल मोहर सिंह ये गिनती बहुत कम थी ।

 

 मेहगांव में बस कर घरेलू हो गए थे मोहर सिंह ।

 

आत्मसमर्पण के बाद मोहर सिंह ने भिण्ड जिले के मेहगांव कस्बे को अपना घर बनाया और वही रहने लगे। वे दाड़ी रखाते थे इसलिए वे वहां दाढ़ी के नाम से ही विख्यात थे। वे हँसमुख और मिलनसार थे इसलिए हर उम्र के लोगों में उनकी खासी लोकप्रियता थी । यह इतनी ज्यादा थी कि वे एक बार नगर पालिका मेहगांव के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े और निर्दलीय ही जीत गए । उंन्होने इस दौरान विकास के काम भी कराए । लोगो ने उनसे फिर चुनाव लड़ने को भी कहा तो उन्होंने मना कर दिया ।

 

दबंगों के अत्याचार की एक सी कहानी ।

 

   चंबल के अंदर जितने भी डकैत बनी है  उनके डकैत वाले की कहानी लगभग एक सी ही है इसी क्रम में  कुख्यात डकैत मोहर सिंह की कहानी मैं भी  दबंग लोगों के द्वारा  उन पर अत्याचार की कहानी  और उसके बाद उनका डकैत बन जाना तत्कालीन समय में  परिस्थितियों पर निर्भर था और वह डकैत बनते गए । खूंखार डकैत मोहर सिंह के परिवार से  ग्राम जटेपूरा गांव में दबंगो ने उनकी जमीन छुड़ा ली थी  और पुलिस से मिलीभगत करके उन्हें कई बार थाने में बन्द भी कराके पिटवाया भी । इसके बाद मोहर सिंह डकैत हो गया और फिर उसने अपने आतंक से पूरे उत्तर भारत को दहलाकर रख दिया। समर्पण के समय इसके गैंग में 37 लोग थे । जब मोहर सिंह गैंग ने समर्पण किया तब उसके पास सारे ऑटोमेटिक हथियार थे जो पुलिस के पास भी नही थे।

 

महात्मा गांधी की तस्वीर के आगे समर्पण ।

 

आज से लगभग 60 वर्ष पूर्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का इस कदर सम्मान था कि उस समय मोर सिंह एवं माधव सिंह जैसे डकैत बी महात्मा गांधी को भगवान के समान मानते थे । उन्होंने महात्मा गांधी की तस्वीर के समक्ष ही समर्पण किया था ।

समर्पण करते समय मोहर सिंह 37 साल का था । वह पूरी तरह निरक्षर था । बकौल उसके-हमने तो स्कूल का मुंह भी नहीं देखा। उसने जब समर्पण किया तो एक,एसएलआर,टॉमीगन,303चाररायफल,ऑटोमेटिक 4 एलएमजी,स्टेनगन ,मार्क 5 रायफल सहित भारी असलाह गांधी के चरणों मे रखा ।

फिल्मी सफर की और भी बढ़ाए कदम ।

 

मोहर सिंह और माधो सिंह कहने को तो अलग-अलग गिरोह थे लेकिन दोनों के बीच खूब याराना था । मोहर सिंह द्वारा माधो सिंह का बहुत आदर किया जाता था । दोनों गैंग ने एक साथ आत्मसमर्पण किया और फिर जेल में रहकर मुकद्दमे निपटाने के बाद ही बाहर आये ।  बाद में चम्बल के डाकू नाम से एक फ़िल्म भी बनी इसमें मोहर सिंह और माधो सिंह दोनों ने अपनी भूमिकाएं भी निभाई ।