ग्वालियर - चंबल से अरविंद तोमर की रिपोर्ट ।
किसी समय में कहा जाता था कि ग्वालियर चंबल क्षेत्र विशेष रूप से चंबल की धरती पर कभी भी डकैत अपने आप को सुना महसूस नहीं कर सकते ,अर्थात चंबल के बीहड़ कभी भी ना तो शांत रह सकते हैंं और नाा ही चंबल की गोद सूनी रह सकती । परंतु जैसे-जैसे समय बदलता गया इस कहावत ने अपना चरित्र ही बदल दिया आज चंबल की धरती पर डकैत नाम काा शब्द लगभग समाप्त हो चुका है । अत्याधुनिक था की इस दौड़ में पुलिस के अधिकारी बताते हैं कि जब से मोबाइल क्रांति आई है तब से डकैत समस्या ही समाप्त हो गई । चंबल की धरती के लगभग अंतिम मूल बागी कहे जाने वाले मोहर सिंह अब नहीं रहे । मोर सिंंह के के साथ ही अब डकैत अर्थात बागी बनने की कहानियां एवं हकीकत समाप्त हो गई।
आतंक की कहानियों के लिए कुख्यात चम्बल घाटी में अपने आतंक की अनगिनत कहानियां और किंवदंतियां लिखने वाले आत्मसमर्पित डकैत सरगना मोहर सिंह का आज निधन हो गया । वे 92 साल के थे । आज मोहर सिंह के निधन के बाद चंबल घाटी से डकैतों का नाम एवं उनसे जुड़ी हुई कहानियां अब केवल कहानियां रह गई ।