दो पूर्व मुख्यमंत्री । विश्वासघात और धोखेबाजी । पिक्चर अभी बाकी है ......

         


संपादक । प्रमोद दुबे द्वारा ।


कहते हैं ,राजनीति में कोई भी सच्चा और कोई भी अच्छा नहीं होता . राजनीति मौके की ,समय की और नजाकत को देखते हुए ,वक्त की होती है । राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता और कोई दोस्त नहीं होता,परंतु कोई विश्वसनीय भी नहीं होता । कुछ भी असंभव नहीं है और कुछ भी हो सकता है । ऐसा ही मध्य प्रदेश में हुआ । दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की वैचारिक एवं मानसिक स्थितियां आज जो है उससे जनता के बीच जा रहा संदेश स्पष्ट करता है कि दोनों की आपस में किसी भी स्तर पर आने वाले समय में राजनीतिक अथवा व्यक्तिगत विषय पर आपसी सहमति नहीं हो सकती । अर्थात दोनों प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री आमने-सामने हैं । राजनीतिक तलवार खींच चुकी है । वजूद और अस्तित्व का प्रश्न आत्म सम्मान को साथ लेकर नए सारथी तलाशने की और निकल चुका है । आने वाले उपचुनाव के रण युद्ध में क्या होता है ? यह तो आने वाला समय ही बताएगा । परंतु अब मध्यप्रदेश में नए राजनीतिक परिदृश्य की पुनरावृति अर्थात नई तस्वीर बनती दिखाई दे रही है ।


मुझे धोखे में रखा गया । झूठा विश्वास भरा गया ।


मध्य प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री अपने दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप लगाते हुए बेहद दुखी मन से कहते हैं की मैं अपनी सरकार केवल इसलिए नहीं बचा सका क्योंकि मुझ में झूठा विश्वास भर दिया गया था , अर्थात मुझे धोखे में रखा गया । अर्थात झूठ छल कपट की राजनीति की जीत एक बार फिर से हो गई । और हम बहुत दूर निकल गए , अब चुनौतियां सामने खड़ी हुई है और हम उन चुनौतियों से निपटने के लिए एक बार फिर से अपने को तैयार कर रहे हैं । 


प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री पर इस तरह का दुखी मन से आरोप लगाना मात्र आरोप लगाना ही नहीं है , कुछ ऐसे प्रश्न खड़े कर देना है जिसके सामने धोखे की राजनीति बहुत छोटी पड़ जाती है । वहीं दूसरी ओर दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री के संबंध में जो जानकारी प्राप्त हुई है, उसके अनुसार वह लगातार उस माहौल एवं विषय के संबंध में संबंधित पूर्व मुख्यमंत्री को आगाह ही नहीं करते रहे बरन उन्होंने भरसक प्रयास किए और सतत संपर्क में लगे रहे । परंतु जब तलवार , दोनों तरफ से खिंच गई है . तो आने वाला समय बेहद चौंकाने वाला भी हो सकता है, आने वाला समय ही तय करेगा कि कौन पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश में अपने राजनीतिक वजूद को उम्र के इस पड़ाव पर बचा कर रख पाएगा ।


खंड खंड विखंडित अब कितने टुकड़े होंगे ।


दो पूर्व मुख्यमंत्री , जो एक पार्टी के मुखिया एवं संरक्षण करता सहित सर्वे सर्वा है , प्रादेशिक स्तर ही नहीं राष्ट्रीय स्तर तक ताकतवर है  , अब ऐसी स्थिति में जब दोनों आमने-सामने होंगे , तो फिर सोच नहीं होगा , वजूद पार्टी का बचाया जाए अथवा खुद का वजूद तय किया जाए . अब दोनों पूर्व मुख्यमंत्री अपनी अपनी रणनीति में अपने अपने वजूद के लिए संघर्ष करते नजर आ रहे हैं । पार्टी तो खंड खंड होकर विखंडित हो चुकी है , परंतु आने वाले उपचुनाव से पहले वजूद बचाने के लिए संघर्ष एवं आत्म सम्मान की लड़ाई के बीच विश्वास और अविश्वास की स्थितियां संपूर्ण पार्टी के लिए ही एक और विघटन की प्रस्तुति पैदा कर रही है । सोचनीय है कि एक तरफ सामने कुशल रणनीति कार लोगों की फौज है , सुनियोजित एवं संगठित पार्टी की चुनौती है , वहीं दूसरी ओर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की वजूद एवं आत्म सम्मान के बीच धोखे की लड़ाई ।


मोहब्बत और जंग की रणनीति बनाम जीत ।


मध्य प्रदेश की राजनीति में पिछले 2 माह पूर्व जो हुआ उसे मोहब्बत और जंग की रणनीति कहें ,अथवा अति विश्वास ,आत्मविश्वास धोखा से जन्म लेने वाले कारण और परिणाम की परिणिति कहें । इस युद्ध में जो सेना सामने खड़ी थी , उसने सामने खड़ी हुई सेना के सेनापति से लेकर लगभग सभी महत्वपूर्ण विश्वसनीय वफादार सैनिकों को अंदर ही अंदर अपनी और इस तरह से आत्मसात किया , लगा मानो ऐसा हो ही नहीं सकता और किसने सोचा था ? परंतु सामने खड़ी पूरी सेना देखते ही देखते धराशाई हो गई। अब जबकि युद्ध जीता जा चुका है , तो फिर ऐसी स्थिति में आरोप-प्रत्यारोप अथवा वफादारी का दोष ,धोखाधड़ी का मामला । क्या फर्क पड़ने वाला है इन सब विषयों से आने वाली नई राजनीतिक दशा और दिशा पर ।लेकिन मोहब्बत और जंग की रणनीति अब जीत के साथ एक बार फिर से अपनी सेना को मजबूत करते हुए सामने खड़ी दिखाई देती है , वहीं दूसरी और पछतावे के अलावा दुख और वर्तमान परिवेश में नया कुछ सीखने की अभिलाषा ही सामने दृष्टि हो रही है ।