ग्वालियर में भाजपाई बगावत । शर्मनाक है कमेटी गठन का प्रस्ताव । मनमाने निर्णय का प्रारंभिक दौर ....

                                           


 


                                                       भोपाल कार्यालय । 


अध्यक्ष चयन की प्रक्रिया पर सवाल ।                                  कहां गया सेवा ,संस्कार अनुशासन का पाठ ।


सामान्य प्रक्रिया अब राष्ट्रीय नेतृत्व तक पहुंची।


मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का उत्थान इस दिशा में कभी भी दिखाई नहीं दिया जिस दिशा में आज दिखाई दे रहा है । संगठन की ओर से कोई भी नियम अनुशासन के अंतर्गत दिखाई नहीं दे रहा तो सेवा भाव और संस्कार तो अपने आप विलुप्त हो ही जाते हैं । प्रदेश में नवनियुक्त अध्यक्ष बीडी शर्मा के नेतृत्व में यह संभवत प्रदेश का पहला मामला है जब ग्वालियर जैसे भारतीय जनता पार्टी के लिए संवेदनशील क्षेत्र में बगावत के हालात दिखाई दिए । बगावत भी कोई सामान्य कार्यकर्ता ने नहीं की वर्ण ऐसे पदाधिकारियों एवं पूर्व पदाधिकारियों ने की जो उम्र के लगभग 60 से 70 वर्ष के पड़ाव पर पहुंच चुके हैं । ग्वालियर शहर सहित संभागीय स्तर पर अपना नाम विशेष रूप से स्थापित करने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व के ग्वालियर अध्यक्ष चुनाव को ना केवल नकारा है वरन बगावत के रूप में ऐसे प्रश्न खड़े कर दिए हैं जिनका जवाब देना भारतीय जनता पार्टी के संगठन को मुश्किल पड़ रहा है ।


सामान्य विषय पर कमेटी गठन , दुर्भाग्यशाली निर्णय।


ग्वालियर मैं विगत दिनों शुरू हुए संगठन महामंत्री सुहास भगत सहित प्रदेश अध्यक्ष एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं के विरुद्ध बगावत के स्वर के पीछे की हकीकत अपने आप में आश्चर्यजनक रही, भारतीय जनता पार्टी का संगठनात्मक विस्तार एवं उसके नियम कभी भी ऐसा नहीं कहते कि अपनी मर्जी से निर्णय किया जा सके । परंतु ग्वालियर में ऐसा ही हुआ। ग्वालियर नवनियुक्त जिला अध्यक्ष कमल मखीजानी के निर्णय में संगठन की हठधर्मिता दिखाई दी वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक बगावत की स्थितियों में अंततः भारतीय जनता पार्टी की ही छवि खराब हुई। पार्टी सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में अब कमेटी का गठन कर दिया गया है जो तय करेगी कि जिन जिला अध्यक्षों के नाम पर असहमति संगठन के पदाधिकारियों द्वारा सामने आ रही है उस पर विचार कमेटी की बैठक में किया जाएगा ।


आखिर यह कौन से अहम की लड़ाई है ?


इस संपूर्ण विषय पर महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या सामान्य प्रक्रिया के अंतर्गत छोटे-छोटे विषय पर सामान्य निर्णय मनमर्जी से किए जाएंगे ? क्या इस तरह के विषयों पर जो लोकल स्तर के है , इन विषयों पर राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों के बीच कमेटी गठित की जाएगी ? भारतीय जनता पार्टी अभी ग्रहण से बाहर भी नहीं आई है और इससे पहले ही मध्यप्रदेश में ऐसे हालात दिखाई देंगे ? मध्य प्रदेश के एक ग्वालियर शहर में जिला अध्यक्ष की नियुक्ति पर चिंतन एवं मनन करने के लिए क्या राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी विशेष रूप से विनय सहस्त्रबुद्धे जैसे लोगों को सामने आना होगा ? आखिर यह कौन से अहम की लड़ाई है ? ग्वालियर चंबल संभाग में आने वाली 16 सीटों पर उपचुनाव की स्थितियां क्या इसी तरह चुनौतीपूर्ण रहेंगी ? क्या भारतीय जनता पार्टी के संगठित कार्यकर्ता एवं संस्कारित संगठन में अब भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा संगठन महामंत्री जैसे पद पर बैठे लोगों के विरुद्ध इस तरह खुलकर बयान बाजी होगी ? अगर इस तरह की हालातों में सुधार नहीं हुआ तो निश्चित आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी के गढ़ कहे जाने वाले कई महत्वपूर्ण संभाग एवं जिले अपना वजूद खो देंगे ।


बेलगाम से नजर आते संगठन मंत्री ।


मध्य प्रदेश ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर भारतीय जनता पार्टी में संगठनात्मक स्तर पर कई बार चिंतन एवं मनन किया गया एवं समय-समय पर संगठन मंत्रियों की मनमानी यों को रोकने के लिए कठोर निर्णय भी पार्टी को लेना पड़े । जिला एवं संभागीय स्तर पर कई ऐसे संगठन मंत्री रहे हैं जो लगभग विवादास्पद ही नहीं वरन भ्रष्टाचार के आरोपों से भी गिरे रहे हैं । पिछले 10 वर्षों के इतिहास में कई संगठन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो कईयों पर चारित्रिक पतन का आरोप । ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी में संगठन स्तर पर संगठन मंत्रियों को भगवान बना देने की परंपरा आखिर कब खत्म होगी । ग्वालियर संभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार संगठन मंत्री संभागीय स्तर पर अपनी मनमानी करने पर बदनाम हो चुके हैं एवं उनकी कार्यशैली को लेकर कई बार विरोध के स्वर प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे । जबकि संगठन मंत्री का दायित्व है कि वह कार्यकर्ता एवं पदाधिकारियों के बीच एवं सरकार के मध्य सेतु का काम करते हुए निर्विवाद छवि के साथ कार्य करें । परंतु संभागीय एवं जिला स्तर पर संगठन मंत्रियों के हालात जगजाहिर है। क्या भारतीय जनता पार्टी में संगठन मंत्रियों की छवि इसी तरह बर्बाद होती रहेगी यह भी अपने आप में प्रश्न है ?