न्यायालय में अपमान के डर से बंगला तालाबंदी पर सरकार का यू टर्न । सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बदसूरत हालात ।







                                  

 

                    हाईकोर्ट की दहलीज पर पहुंचते ही मामला रुका ।   सरकारी बंगलों की रंगीनियों अभी जारी रहेगी ।
 

 

संपादक प्रमोद दुबे द्वारा ।

 

 

भोपाल । लोकतंत्र के मुख्य स्तंभ कहे जाने वाले नेता तंत्र के लिए राजधानी में सरकारी सुविधाओं की फ्री फोकट व्यवस्था अंतर्गत जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे को किस तरह रंगी नियत में लुटाया जाए , इसके लिए अब भाजपा एवं कांग्रेस का सार्वजनिक तमाशा एक सा ही नजर आता है । अर्थात पिछले 15 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए विधायक हो या पूर्व विधायक अथवा पूर्व मंत्री , सभी एक से नजर आते हैं । कुल मिलाकर जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्स के पैसे से प्राप्त करने वाले सरकारी सुविधाओं मैं सभी नेता सबसे आगे हैं । जब बात सरकारी बंगलों की चल रही है तो राजधानी जैसे शहर में अर्थात भोपाल में करोड़ों की जमीन पर लाखों का किराया जब सैकड़ों पर आ जाए अर्थात मंत्रियों को मातृ हजार रु रुपए मैं बंगला रंगी नियत के लिए और शो बाजी के लिए मिलता हो । तो फिर चाहे मुख्यमंत्री की  बरदारी हो अथवा विरोध हो ,अथवा हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़े । क्या फर्क पड़ने वाला है । 

 

प्रदेश सरकार का यू टर्न । ऐश करो कांग्रेसी मंत्री । करोड़ों के बंगले 2000 में ।

 

प्रदेश भाजपा सरकार ने जिस तरह कांग्रेस के पूर्व मंत्रियों से बांग्ला वापस लेने के लिए रणनीति के साथ चतुर ता दिखाते हुए कठोरता दिखाई । परंतु कांग्रेस की सक्रियता एवं कांग्रेसियों ने जब भाजपाइयों को आईना दिखाया , तो शर्मिंदा सरकार ने खुद ही अपना कदम वापस ले लिया । कहते हैं हमाम में सभी नंगे । बंगला राजनीति में भाजपा भी कहीं पीछे नहीं है और कांग्रेश तो उसके आगे कुछ भी । जानकारी के अनुसार भाजपा नेताओं के पास 70% सरकारी आवास कब्जे में बने हुए हैं ।

 

न्यायालय का ऐसा डर , रातों-रात आदेश वापस।

 

और वही हुआ , मध्य प्रदेश में पिछले तीन दिवस पूर्व प्रारंभ हुई बंगले की राजनीति अब दम तोड़ चुकी है । कांग्रेस सरकार में पूर्व मंत्री रहे लोगों से अब बंगला खाली कराने के लिए दबाव नहीं दिया जाएगा वहीं दूसरी ओर विवाद खड़ा करने के सूत्रधार पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट के बंगले पर लगी हुई सील अब सरकार ने स्वयं हटा ली है और बका दे तरुण भनोट को इसके संबंध में सूचना दे दी है। जानकारी के अनुसार तरुण भनोट बंगला खाली कराने एवं बंगले को सील करने के खिलाफ हाईकोर्ट जबलपुर में मामला दायर कर चुके थे । जिसकी सुनवाई आने वाले 10 दिनों बाद होनी थी । परंतु हाई कोर्ट में सुनवाई के 10 दिवस पूर्व ही 24 घंटे के बाद ही सरकार ने अपने कदम पीछे हटा लिए ।

 


बंगले के मोह में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को सड़कों पर फेंकने बालों से सुचिता की क्या उम्मीद ।

 

 लगभग 2 वर्ष पूर्व जब सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को भारतीय जनता पार्टी कार्यकाल के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर सख्त आदेश जारी करते हुए हिदायत दी थी कि किसी भी सूरत में सरकारी बंगले का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए एवं सत्ता से बाहर होने के बाद अथवा पूर्व विधायक या पूर्व मंत्री कहलाने के बाद तुरंत प्रभाव से बंगला खाली कर देना चाहिए । तो इसका सबसे बड़ा मजाक मध्यप्रदेश में ही दिखाई दिया । मध्यप्रदेश में तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित कई पूर्व मंत्रियों के नाम पर आज भी किसी ना किसीकागजी मजाक के रूप में बंगले मौजूद बने हुए हैं । जानकारी के अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से लेकर शिवराज सिंह चौहान वर्तमान मुख्यमंत्री हो अथवा उमा भारती से लेकर कई पूर्व मंत्री पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से लेकर उनके खास रहे कई कांग्रेसी , भाजपा में शिवराज सिंह चौहान से जुड़े हुए कई भाजपाई । कुल मिलाकर आश्चर्य वाला विषय है कि भोपाल में करोड़ों अरबों के बंगलों पर आज भी नेताओं के ऐसे कब्जे में मौजूद हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट भी नहीं हटा पाई ।

 

संपूर्ण भारतवर्ष में सरकारी बंगलों के यही हालात ।

 

चर्चा जब मध्य प्रदेश की की जा रही है तो यह स्पष्ट कर देना होगा कि मध्य प्रदेश ही नहीं वरन संपूर्ण भारतवर्ष में सरकारी बंगलों के यही हालात है सरकारी बंगलों का उपयोग से अधिक दुरुपयोग होता है । लगभग 8 वर्ष पूर्व जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने भी सख्त आदेश देते हुए इस मामले में गंभीर रुख अपनाते हुए यहां तक कह डाला कि इस मामले अंतर्गत गैर जमानती अपराध माना जाएगा । अर्थात सरकारी बंगला समय पर खाली नहीं करने की स्थिति में गैर जमानती धाराओं के अंतर्गत मुकदमा कायम किया जाए । जब यह आदेश सरकार के पालन हेतु पहुंचा तो तत्कालीन मनमोहन सरकार ने इस मामले पर हाथ खड़े कर दिए और लगातार बंगला राजनीति में ना उलझते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को ताक पर रख दिया । ऐसी स्थिति में अपील करता है एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट की शरण पहुंचा तब सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस देश का तो भगवान भी इस धरती पर उतर आए तो भला नहीं हो सकता । फिलहाल इस देश में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन कुछ राज्यों में किए जा रहा है परंतु अपनी अपनी सुविधाओं के अनुसार राज्य सरकार इस मामले को तू नहीं देना चाहती ।

 

  प्रदेश में 70% बंगलों पर गैर कानूनी तरीके से राजनीतिक दलों का कब्जा ।

 

जैसा कि मध्य प्रदेश में हुआ 15 वर्षों से मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और भाजपा की सरकार में 70% बंगलों पर गैर कानूनी तरीके से राजनीतिक दलों ने अपना कब्जा जमा रखा है । मध्य प्रदेश में हुए घटनाक्रम के बाद यहां स्पष्ट कर देना होगा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पर सांसद रहते हुए जो बंगला अलॉट है वह उनकी धर्मपत्नी साधना सिंह के नाम पर समाज के उद्धार हेतु गठित एक कमेटी के नाम से आवंटित है वहीं दूसरी ओर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह के नाम पर आलीशान बंगला है तो कई वर्षों से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नाम पर भी एक बंगला अलॉट है । कुल मिलाकर चाहे वर्तमान मुख्यमंत्री हो अथवा पूर्व मुख्यमंत्री , वर्तमान मंत्री हो अथवा पूर्व मंत्री , वर्तमान विधायक अथवा पूर्व विधायक । प्रदेश की राजधानी भोपाल में जहां 1000 स्क्वायर फीट के एक फ्लोर को किराए पर लेने के लिए 15 से ₹20000 किराया देना पड़ता है वहीं 15 से 20000 स्क्वायर फीट के बंगले का किराया जब ₹200 देना पड़े तो सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार के नुमाइंदे किसी भी स्तर तक लड़ने के लिए तत्पर रहते हैं ।

 

प्रदेश में फिलहाल बंगला अतिक्रमण का कारोबार अब जारी रहेगा और धड़ल्ले से कांग्रेस के पूर्व मंत्री इन बंगलो का आनंद उठाते रहेंगे । कुल मिलाकर जनता है  और जनता का पैसा है , जो टैक्स के रूप में इन महानुभावों की ऐश्वर्या में खर्च करने के लिए तैयार है ।