दिल्ली कार्यालय से ।
मध्य प्रदेश ही नहीं संपूर्ण भारतवर्ष में लॉकडाउन 3.0 के दौरान शराब की दुकानों को लेकर संबंधित प्रदेश सरकारों की सामाजिक स्तर पर जहां आलोचना हो रही है वहीं दूसरी ओर बौद्धिक एवं आर्थिक मुद्दों पर अगर तार्किक विषय सामने रखा जाए तो निश्चित रूप से नगद राशि के रूप में केवल एक ही प्रदेश सरकारों को आय का साधन होता है और वह है शराब । एक आंकड़े के अनुसार हिंदुस्तान की प्रत्येक राज्य में शराब से प्राप्त होने वाले राजस्व को 20 से 30% अथवा इससे अधिक माना जाता है । अर्थात जो भी राज्य शराब की दुकानों से राजस्व प्राप्त कर रहा है उसे प्रतिदिन कम से कम 20 से 30 करोड़ अथवा इससे कहीं अधिक राजस्व की हानि हो रही है ।
राजस्व और आर्थिक क्षेत्र में दबाव घातक ।
राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि पिछले 1 महीने से अधिक के इस महामारी के चलते राष्ट्रीय स्तर पर राजस्व प्राप्त ना होना आर्थिक क्षेत्र में दबाव के चलते भयानक स्थिति पैदा कर सकता है । विगत दिनों दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री केजरीवाल स्पष्ट कहा था कि अगर हमने अपने यहां अर्थात दिल्ली में आर्थिक गतिविधियां प्रारंभ नहीं की तो हमारे पास हमारे अपने लिए तो छोड़ें सरकार के कर्मचारियों को तनख्वाह बांटने के लिए पैसा नहीं होगा । इस मामले में स्पष्ट कर देना होगा कि लगभग सभी प्रदेशों में हालात इससे भी बदतर हो सकते हैं । वहीं दूसरी और राष्ट्रीय स्तर पर केवल शराब मामले को एक तरफ रख दिया जाए तो आने वाले 1 माह के अंदर अगर आर्थिक गतिविधियां प्रारंभ नहीं हुई तो भुखमरी की स्थितियां एवं बेरोजगारी इस कदर बढ़ जाएगी कि इसे वापस पटरी पर लाने के लिए 2 से 3 वर्ष लगेंगे । कुल मिलाकर राजस्व की वसूली एवं आर्थिक क्षेत्र में दवा की स्थितियां आने वाले समय में भारतवर्ष के लिए बेहद घातक सिद्ध होने वाली है । शराब की दुकानों को खोलने का निर्णय इसी तरह राजस्व प्राप्ति से जुड़ा हुआ है । जिसे भाजपा की सरकारों वाले राज्यों में ही नहीं वरन कांग्रेश की सरकारों वाले राज्यों में भी प्रारंभ कर दिया गया है ।
कैसे होती है राज्यों की कमाई
असल में राज्यों की कमाई के मुख्य स्रोत हैं- राज्य जीएसटी, भू-राजस्व, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट या सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाला एक्साइज और गाड़ियों आदि पर लगने वाले कई अन्य टैक्स. शराब पर लगने वाला एक्साइज टैक्स यानी आबकारी शुल्क राज्यों के राजस्व में एक बड़ा योगदान करता है.शराब और पेट्रोल-डीजल को जीएसटी से बाहर रखा गया है. इसलिए राज्य इन पर भारी टैक्स लगाकर अपना राजस्व बढ़ाते हैं. हाल में राजस्थान सरकार ने शराब पर एक्साइज टैक्स 10 फीसदी बढ़ा दिया. राज्य में अब देश में निर्मित विदेशी शराब (IMFL) पर टैक्स 35 से 45 फीसदी तक हो गया है. इसी तरह बीयर पर भी टैक्स बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया गया है. यानी 100 रुपये की बीयर में 45 रुपया तो ग्राहक सरकार को टैक्स ही दे देता है.इसके अलावा राज्यों को केंद्रीय जीएसटी से हिस्सा मिलता है. लेकिन केंद्र सरकार कई महीनों से राज्यों को जीएसटी का हिस्सा नहीं दे पा रही, जिसको लेकर राज्यों ने कई बार शिकायत भी की है.राज्यों के राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब और पेट्रोल-डीजल की बिक्री से आता है. लॉकडाउन की वजह से इन दोनों की बिक्री ठप थी, इस वजह से राज्यों की वित्तीय हालत खराब हो गई थी. हालत यह हो गई थी कि कई राज्यों को 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा था.
कितनी होती है शराब से कमाई
ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब से आता है. शराब की बिक्री से यूपी के कुल टैक्स राजस्व का करीब 20 फीसदी हिस्सा मिलता है. उत्तराखंड में भी शराब से मिलने वाला आबकारी शुल्क कुल राजस्व का करीब 20 फीसदी होता है.सभी राज्यों की बात की जाए तो पिछले वित्त वर्ष में उन्होंने कुल मिलाकर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की कमाई यानी टैक्स राजस्व शराब बिक्री से हासिल की थी,शराब की बिक्री से वित्त वर्ष 2019-20 में महाराष्ट्र ने 24,000 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश ने 26,000 करोड़, तेलंगाना ने 21,500 करोड़, कर्नाटक ने 20,948 करोड़, पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़ रुपये, राजस्थान ने 7,800 करोड़ रुपये और पंजाब ने 5,600 करोड़ रुपये का राजस्व हासिल किया था. दिल्ली ने इस दौरान करीब 5,500 करोड़ रुपये का आबकारी शुल्क हासिल किया था. राज्य के कुल राजस्व का यह करीब 14 फीसदी है. बिहार और गुजरात में शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगा हुआ है.